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SC/ST बच्चों की बढ़ती यौन हिंसा पर NCPCR अध्यक्ष ने जताई चिंता : मुआवजे के लिए राज्यों के मुख्यसचिवों को प्रेषित की अनुशंसा 

हाल ही में देश भर में 5000 प्रकरणों के डेटा के विश्लेषण से यह सामने आया है कि भारत में यौन हिंसा से पीड़ित बच्चों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के बच्चों की संख्या 40 प्रतिशत से अधिक है। यह आंकड़ा समाज के सबसे कमजोर वर्गों की स्थिति को उजागर करता है और उनके प्रति विशेष ध्यान देने की आवश्यकता को दर्शाता है।

NCPCR अध्यक्ष ने मुआवजा के लिए राज्य के मुख्य सचिवों को अनुशंसा पत्र किया प्रेषित

इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए, NCPCR अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने राज्यों के मुख्य सचिवों को अनुशंसा पत्र प्रेषित किया है ताकि SC और ST वर्ग के बच्चों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत तत्काल मुआवज़ा दिया जा सके। इस अधिनियम के तहत, ऐसे बच्चों को मुआवज़ा उपलब्ध कराना न केवल उनके अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि उन्हें पुनर्वास के लिए आवश्यक सहायता भी प्रदान करता है।

पॉक्सो एक्ट और मुआवज़ा योजना

भारत में यौन हिंसा, दुराचार और बलात्कार से पीड़ित बच्चों के पुनर्वास के लिए पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम में मुआवज़ा देने का प्रावधान किया गया है। भारत सरकार इस उद्देश्य के लिए पीड़ित मुआवज़ा योजना के तहत धन उपलब्ध करवाती है। हालांकि, इस धनराशि को प्राप्त करने के लिए जिलों और राज्यों के अधिकारियों को न्यायालयीन प्रक्रिया का पालन करना होता है, जिसमें समय लगता है। यह देरी पीड़ित बच्चों के लिए कठिनाई पैदा कर सकती है, जिन्हें तत्काल सहायता की आवश्यकता होती है।

राहत योजनाओं की आवश्यकता

इस स्थिति को देखते हुए, यह आवश्यक है कि सभी वर्गों के पीड़ित बच्चों को राहत पहुँचाने के लिए राज्यों को अपनी राहत योजनाएँ बनानी चाहिए। सामान्य वर्ग के बच्चों के लिए भी विशेष राहत योजनाएँ तैयार की जानी चाहिए, ताकि कोई भी बच्चा अत्याचार का शिकार होने के बाद मदद से वंचित न रहे।

गौरतलब है कि यौन हिंसा के शिकार बच्चों की संख्या में वृद्धि न केवल एक सामाजिक समस्या है, बल्कि यह एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन भी है। इस दिशा में ठोस कदम उठाना आवश्यक है, ताकि सभी बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार मिल सके। SC/ST वर्ग के बच्चों के लिए विशेष ध्यान देने और राहत योजनाओं को लागू करने से न केवल उनके अधिकारों की रक्षा होगी, बल्कि समाज में समानता और न्याय की भावना को भी बढ़ावा मिलेगा।

KK Sagar
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