भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 29 जनवरी 2025 को एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सुबह 6 बजकर 23 मिनट पर इसरो ने अपने जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV-F15) के माध्यम से NVS-02 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। इस लॉन्च के साथ ही इसरो ने अपने अंतरिक्ष केंद्र से 100वां प्रक्षेपण पूरा कर लिया, जो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
मिशन की सफलता पर इसरो और वैज्ञानिकों की खुशी
इसरो ने लॉन्च के कुछ ही मिनटों बाद घोषणा की कि GSLV-F15 मिशन पूरी तरह सफल रहा। इस सफलता के साथ भारत ने अपने अंतरिक्ष नेविगेशन सिस्टम को और मजबूत कर लिया है। इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि NVS-02 सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया गया है, जहां से यह पृथ्वी की सतह से लगभग 36,000 किमी ऊपर नेविगेशन और संचार सेवाओं के लिए काम करेगा।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह की बधाई
इस ऐतिहासिक क्षण पर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसरो को बधाई देते हुए कहा—
“श्रीहरिकोटा से 100वें प्रक्षेपण की ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए इसरो को बधाई। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए गौरवशाली क्षण है। विक्रम साराभाई और सतीश धवन जैसे महान वैज्ञानिकों द्वारा की गई छोटी शुरुआत आज वैश्विक पहचान बना चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र को ‘अनलॉक’ करने के बाद यह एक बड़ी छलांग है।”
उन्होंने कहा कि इस सफलता से यह साबित होता है कि “आकाश की कोई सीमा नहीं है” और भारत अंतरिक्ष अनुसंधान में नई ऊंचाइयों को छू रहा है।
क्या है NVS-02 सैटेलाइट और इसका महत्व?
NVS-02 सैटेलाइट भारत के नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (NavIC) प्रणाली का हिस्सा है। यह NavIC के दूसरे जेनरेशन का उपग्रह है, जो भारत और उसके आसपास के क्षेत्रों में सटीक नेविगेशन सेवाएं प्रदान करेगा।
इस सैटेलाइट से भारत को निम्नलिखित लाभ होंगे—
- सटीक जीपीएस सेवाएं: यह उपग्रह भारत की स्वदेशी NavIC प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाएगा, जिससे देश की GPS जैसी सेवाएं और सटीक होंगी।
- रक्षा और सुरक्षा: यह उपग्रह भारतीय सेना और नौसेना के लिए बेहतर नेविगेशन और संचार सुविधाएं प्रदान करेगा।
- आपदा प्रबंधन: बाढ़, चक्रवात और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान आपदा प्रबंधन एजेंसियों को सटीक लोकेशन डेटा मिलेगा।
- ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स: भारत की परिवहन व्यवस्था, रेलवे और हवाई यातायात को इससे काफी फायदा होगा।
GSLV-F15 की विशेषताएं
- 17वीं उड़ान: यह इसरो के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) की 17वीं उड़ान थी।
- इंडिजिनियस क्रायोजेनिक स्टेज: यह स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ GSLV की 11वीं उड़ान थी।
- बेहतर पेलोड क्षमता: इसमें 3.4 मीटर व्यास का मेटालिक पेलोड फेयरिंग इस्तेमाल किया गया है, जो पेलोड को अंतरिक्ष में सुरक्षित रखने में मदद करता है।
छात्रों के लिए ऐतिहासिक अनुभव
इस ऐतिहासिक प्रक्षेपण को देखने के लिए देशभर से कई छात्र-छात्राएं श्रीहरिकोटा पहुंचे थे। इसरो ने खासतौर पर छात्रों को लॉन्च देखने का अवसर दिया।
गुजरात के एक छात्र तीर्थ ने कहा—
“मैं अपने कॉलेज से 100वें लॉन्च को देखने आया हूं। यह बहुत रोमांचक अनुभव था। इसरो अब विदेशी उपग्रह भी लॉन्च कर रहा है, जिससे भारत को राजस्व भी मिल रहा है। यह भारत सरकार और इसरो के लिए गर्व की बात है।”
बिहार के छात्र अविनाश ने पहली बार किसी रॉकेट लॉन्च को देखा और कहा—
“यह एक शानदार अनुभव था। मैंने पहले केवल टीवी पर देखा था, लेकिन अब इसे अपनी आंखों से देखना एक अलग ही खुशी है।”
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम नए मुकाम पर
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम लगातार नई ऊंचाइयों को छू रहा है। हाल ही में इसरो ने चंद्रयान-3 और आदित्य-एल1 मिशन को भी सफलतापूर्वक पूरा किया था। अब GSLV-F15 की सफलता भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी और सैटेलाइट नेविगेशन में और अधिक आत्मनिर्भर बनाएगी।
इसरो की यह उपलब्धि न केवल भारत के वैज्ञानिकों के कौशल का प्रदर्शन करती है बल्कि देश को एक वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में भी स्थापित करती है। अब भारत न केवल अपने लिए बल्कि दुनिया के अन्य देशों के लिए भी अंतरिक्ष मिशन संचालित कर रहा है।
GSLV-F15 के जरिए NVS-02 सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह लॉन्च भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी, रक्षा, संचार और परिवहन के क्षेत्र में और अधिक आत्मनिर्भर बनाएगा। इसरो की यह उपलब्धि एक बार फिर साबित करती है कि भारत अंतरिक्ष अनुसंधान में एक अग्रणी शक्ति बन चुका है।