गोवर्धन पूजा पर इन विशेष मंत्रों एवं आरती से करें भगवान कृष्ण की उपासना, जीवन के सभी कष्टों का होगा नाश, सुख-समृद्धि का मिलेगा आशीर्वाद

Anupam Kumar
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पर्व –त्यौहार : सनातन धर्म में गोर्वधन पूजा का विशेष महत्व है। इस दौरान भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। जो की इस पूजा के महत्व को और भी बढ़ता है। भगवान कृष्ण जगत के पालनहार हैं और भक्त पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ उनकी पूजा करते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के कई तरीके हैं। कुछ लोग माखन चोर की पूजा उनकी पसंदीदा चीजें जैसे तुलसी पत्र चढ़ाकर करते हैं और कुछ लोग व्रत रखकर उनकी पूजा करते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं।
ऐसे में आज के दिन कुछ चमत्कारी मंत्र और स्तुति का जाप करने से भगवान बहुत प्रसन्न होते है और आपको लाभ प्राप्त होगा तो आइए जानते हैं –

।।गोवर्धन पूजा मंत्र ।

गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।

विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।

।।श्री कृष्ण के शक्तिशाली मंत्र।।

”श्री कृष्णाय वयं नुम:

सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे।

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुम:।।

ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात”

।।श्री कृष्ण स्तुति ।।

श्री कृष्णचन्द्र कृपालु भजु मन, नन्द नन्दन यदुवरम्

आनन्दमय सुखराशि ब्रजपति, भक्तजन संकटहरम्

सिर मुकुट कुण्डल तिलक उर, बनमाल कौस्तुभ सुन्दरम्

आजानु भुज पट पीत धर, कर लकुटि मुख मुरली धरम्

बृष भानुजा सह राजहिं प्रिय, सुमन सुभव सिंहासनम्

ललितादि सखिजन सेवहिं, लिए छत्र चामर व्यंजनम्

पूतना-तृण-शंकट-अधबक, केशि-व्योम-विमर्दनम्

रजक-गज-चाणूर-मुष्टिक, दुष्ट कंस निकन्दनम्

गो-गोप गोपीजन सुखद, कालीय विषधर गंजनम्

भव-भय हरण अशरणशरण, ब्रह्मादि मुनि-मन रंजनम्

श्याम-श्यामा करत केलि, कालिन्दी तट नट नागरम्

सोइ रूप मम हिय बसहुं नित, आनन्दघन सुख सागरम्

इति वदति सन्त सुजान श्री सनकादि मुनिजन सेवितम्

भव-मोतिहर मन दीनबन्धो, जयति जय सर्वेश्वरम्.

।।श्री गोवर्धन महाराज की आरती ।।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।

तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,

तोपे चढ़े दूध की धार।।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।

तेरी सात कोस की परिकम्मा,

और चकलेश्वर विश्राम

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।

तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ,

ठोड़ी पे हीरा लाल।।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।

तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ,

तेरी झाँकी बनी विशाल।।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।

गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण।।

करो भक्त का बेड़ा पार

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।।

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