मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। यह स्वरूप तपस्या और संयम का प्रतीक है। इनके एक हाथ में जपमाला और दूसरे में कमंडलु होता है। मां का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और दिव्य है, जो साधकों को कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और संकल्प की प्रेरणा देता है।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी थीं। नारद मुनि के उपदेश के अनुसार, उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की। हजारों वर्षों तक उन्होंने केवल फल-फूल, शाक और बिल्व पत्रों का सेवन कर कठिन तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। कठिन तपस्या के कारण ही उन्हें ‘ब्रह्मचारिणी’ कहा जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को स्वच्छ कर मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- मां को कुमकुम, अक्षत, पुष्प और विशेष रूप से सफेद रंग के फूल अर्पित करें।
- दूध, दही, मिश्री और पंचामृत का भोग लगाएं।
- मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें और आरती करें।
मां ब्रह्मचारिणी मंत्र
- “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः”
- “दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥”
शुभ रंग
नवरात्रि के दूसरे दिन सफेद रंग को शुभ माना जाता है। यह शुद्धता और शांति का प्रतीक है।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना का महत्व
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक को तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होता और साधक को सर्व सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से आत्मबल और धैर्य की वृद्धि होती है।