या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। : दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना, तप और संयम की देवी से मांगे आशीर्वाद

KK Sagar
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मां ब्रह्मचारिणी की आराधना का महत्व

शारदीय नवरात्र का आज दूसरा दिन है और इस दिन मां दुर्गा की दूसरी शक्ति मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। उनके नाम से ही उनके स्वरूप और शक्तियों का बोध होता है। ‘ब्रह्म’ का अर्थ तपस्या और ‘चारिणी’ का अर्थ आचरण करने वाली है। अर्थात मां ब्रह्मचारिणी वह देवी हैं, जिन्होंने कठिन तपस्या का आचरण कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। उनकी आराधना से भक्त को विद्या, विवेक और आध्यात्मिक शक्ति का आशीर्वाद मिलता है।

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप तपस्या और साधना से जुड़ा हुआ है। उनका शरीर उज्ज्वल और गोरा है, जिसमें तेजस्विता और आभा झलकती है। चेहरा अत्यंत शांत और सरल है, जो साधना और संयम का परिचायक है। वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जो पवित्रता और ब्रह्मचर्य का प्रतीक है। आभूषण साधारण होते हैं, क्योंकि वे तपस्विनी स्वरूप हैं। उनके दाहिने हाथ में रुद्राक्ष या कमल बीज की जपमाला होती है, जो निरंतर भक्ति और साधना का संकेत देती है, जबकि बाएं हाथ में कमंडल शोभित होता है, जो संयम और साधना का प्रतीक है। मां नंगे पांव चलती हुई दर्शाई जाती हैं, जो उनके कठोर तप और साधना के मार्ग को स्पष्ट करता है।

पूजन से मिलने वाले फल

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि उनकी उपासना से साधक के भीतर तप, धैर्य, त्याग और संयम की शक्ति आती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से जीवन में निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और सच्चे ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित होती है। उनकी आराधना से न केवल घर-परिवार में सुख-शांति और सौभाग्य आता है, बल्कि ग्रह-नक्षत्रों के अशुभ प्रभाव भी दूर हो जाते हैं।

भोग और अर्पण

आज मां ब्रह्मचारिणी को चीनी, खीर, पंचामृत और बर्फी का भोग लगाया जाता है। मां को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है, इसलिए पूजा में सफेद वस्त्र, सफेद फूल और मौसमी फल अर्पित करने का विशेष महत्व है।

पूजन विधि

भक्त सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं, पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करते हैं और चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर उस पर मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित करते हैं। इसके बाद चंदन, रोली, अक्षत और भोग अर्पित करके देसी घी से दीप प्रज्वलित किया जाता है। परिवार सहित मां की आरती उतारी जाती है और दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है।

मंत्रों का महत्व

पूजा के दौरान मां ब्रह्मचारिणी के ध्यान और बीज मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है। मां के ध्यान मंत्र “दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।”, बीज मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः” और सिद्ध मंत्र “दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।”, भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा और मनोबल प्रदान करते हैं।

आज के विशेष मुहूर्त

पंडितों के अनुसार, इस दिन विशेष मुहूर्त बनाए गए हैं। ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 4:36 से 5:23 बजे तक, अभिजित मुहूर्त 11:50 से 12:38 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 6:17 से 6:41 बजे तक और अमृत काल सुबह 7:06 से 8:51 बजे तक रहेगा। वहीं, द्विपुष्कर योग 24 सितंबर की भोर 4:51 बजे तक प्रभावी रहेगा।

श्रद्धालुओं में आस्था की लहर

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से भक्त के जीवन में तप, संयम और आत्मबल का संचार होता है। श्रद्धालु व्रत-उपवास रखकर माता की उपासना कर रहे हैं और घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं।

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