मिरर मीडिया : झारखंड में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य में भ्रष्टाचार को लेकर एक बार फिर सूबे के मुख्यमंत्री पर निशाना साधा है। ट्वीट के माध्यम से उन्होंने लिखा है
कुछ सिरफिरे लोग हमारे ट्वीट पर अक्सर यह सवाल उठाते हैं कि क्या झारखंड में सारे घपले-घोटाले तीन साल में ही हुए हैं? क्या इससे पहले अफ़सर-बिचौलिये नहीं लूट रहे थे? आदि-आदि।
मैं निःसंकोच स्वीकार करता हूँ कि राज्य विभाजन के पहले भी और बाद में भी कुछ अधिकारियों-दलालों ने इस गरीब, पिछड़े राज्य में शासन करने के अनुभवों की कमजोरी का समय-समय पर फ़ायदा उठाया है। लेकिन पिछले तीन सालों में सत्ता संरक्षण एवं साँठगाँठ में ये लूट का धंधा जितना परवान चढ़ गया है। ऐसा पहले कभी नहीं था।
सवाल ये नहीं है कि तब क्या हुआ और अब क्या हो रहा है? पहले सरकार के संज्ञान में आता था, चोरी पकड़ी जाती थी तो कार्रवाई भी होती थी। लेकिन आज क्यों नहीं हो रहा है? अब लोग पकड़े गये हैं, पकड़े जा रहे हैं तो कार्रवाई तो होनी ही चाहिये न?
खुद को ग़रीबों, आदिवासियों की हितैषी बता घड़ियाली आंसू बहाने एवं बात-बात में आदिवासी मुख्यमंत्री बताकर अपनी चोरी का बचाव करने वाली हेमंत सोरेन सरकार को बताना चाहिये कि पिछले एक सालों में केंद्रीय एजेंसियों की कारवाई में जो लोग पकड़े गये हैं, पकड़े जा रहे हैं, वो कौन लोग हैं?
पंकज मिश्रा, पूजा सिंघल, प्रेम प्रकाश, बीरेन्द्र राम, छवि रंजन, शिवकुमार जैसे सत्ता पोषित पैसे के खिलाड़ी कौन हैं? गरीब आदिवासियों की सम्पदा लूटने और जो मर्ज़ी सो करने-कराने की ताक़त किसने और क्यों दी?
सवाल ये भी नहीं है कि कौन पकड़ रहा है और कौन लोग पकड़े जा रहे हैं। लेकिन जब घोटाला उजागर हो रहा है और लोग पकड़े जा रहे हैं तो राज्य सरकार का काम है ऐसे लोगों पर क़ानून के हिसाब कार्रवाई करना। लेकिन हेमंत सरकार ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने के बदले उन्हें बचाने के लिये रॉंची से दिल्ली तक ग़रीबों के टैक्स के पैसे से मंहगे वकीलों की सेवा दिलवा रही है।
जिन लोगों पर जॉंच में मिले सबूतों के आधार पर मुक़दमा किया जाना चाहिये उनपर मुक़दमों की फ़ाईल को लटका घुमा कर जलेबी बना रही है।
यह भी सच है कि झारखंड को कुछ बेईमान अफ़सरों-दलालों ने जिस कदर और जितना लूटा है, पूरे देश में इसकी दूसरी मिसाल नहीं मिल सकती। लेकिन ऐसे लोगों पर कार्रवाई न करने का उदाहरण भी देश में कोई दूसरा नहीं हो सकता? वजह है राजनैतिक संलिप्तता और इच्छा शक्ति की कमी। और इन सब चीजों का ख़ामियाज़ा बेचारी झारखंड की जनता भुगत रही है।