भारत और चीन के बीच पांच साल के लंबे अंतराल के बाद एक बड़ी कूटनीतिक पहल देखने को मिली है। दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों ने बीजिंग में सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए 23वें दौर की बैठक की। इस ऐतिहासिक बैठक में कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने पर सहमति बनी है। यह कदम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत-चीन के आपसी संबंधों में नई ऊर्जा का संकेत भी देता है।
बैठक के प्रमुख पहलू
इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने किया, जबकि चीन की ओर से विदेश मंत्री वांग यी शामिल हुए। सीमा पर शांति बनाए रखने और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा करते हुए दोनों देशों ने छह महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सहमति जताई। इनमें सीमा पार नदियों का डेटा साझा करना, व्यापार को सुचारू करना और कैलाश मानसरोवर यात्रा को पुनः शुरू करना शामिल है। यह बैठक 2019 के बाद पहली बार आयोजित हुई, क्योंकि पूर्वी लद्दाख में चार साल से चला आ रहा गतिरोध और गलवान घाटी में हुई हिंसा के कारण दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण थे।
कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्व
कैलाश मानसरोवर यात्रा हिंदू, बौद्ध, जैन और बोन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है। यह यात्रा तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शन करने के लिए होती है।
कैलाश पर्वत: इसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है।
मानसरोवर झील: इसे पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा द्वारा निर्मित माना गया है।
यात्रा के दौरान श्रद्धालु कैलाश पर्वत की परिक्रमा करते हैं और मानसरोवर झील में स्नान करते हैं, जिसे मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है। यह यात्रा भौतिक और आध्यात्मिक दोनों रूपों में कठिन मानी जाती है।
यात्रा मार्ग और आवश्यक दस्तावेज
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए तीन मुख्य मार्ग हैं:
- लिपुलेख दर्रा मार्ग (उत्तराखंड)
- नाथू ला दर्रा मार्ग (सिक्किम)
- शिगात्से मार्ग (तिब्बत)
यात्रा के लिए जरूरी दस्तावेजों में वैध पासपोर्ट, तिब्बत के लिए वीजा, स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और यात्रा बीमा शामिल हैं।
पिछले वर्षों में यात्रा क्यों रुकी?
2020 में गलवान घाटी हिंसा और कोविड-19 महामारी के कारण भारत-चीन संबंध बेहद खराब हो गए थे। इसके चलते चीन ने भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा के दोनों आधिकारिक रूट बंद कर दिए।
चीन ने यात्रा की फीस बढ़ा दी।
भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए नए परमिट जारी करने से इनकार कर दिया।
पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षा के नाम पर यात्रा के नियम अत्यधिक सख्त कर दिए।
नेपाल के लोगों के लिए सीमा खोलने के बावजूद भारतीयों पर प्रतिबंध बनाए रखा।
नए प्रयास और भविष्य की उम्मीदें
हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ब्राजील के रियो डी जनेरियो में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की थी। इस दौरान कैलाश मानसरोवर यात्रा और भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानें शुरू करने पर चर्चा हुई। अब बीजिंग में हुई बैठक के बाद इस यात्रा को पुनः शुरू करने पर सहमति बनी है, जिससे हजारों भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए यह शुभ समाचार साबित हुआ है।
धार्मिक और राजनयिक महत्व
कैलाश मानसरोवर यात्रा सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि दोनों देशों के आपसी संबंधों को सुधारने का भी माध्यम है। यह यात्रा सीमा पर शांति और विश्वास बहाली के प्रयासों को मजबूत करेगी।
गौरतलब हैं कि कैलाश मानसरोवर यात्रा के पुनः शुरू होने से भारत और चीन के संबंधों में सुधार की उम्मीद जगी है। यह कदम न केवल भारत के तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही कूटनीतिक खाई को पाटने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब सभी की निगाहें इस बात पर होंगी कि यह यात्रा कब और किन शर्तों के साथ शुरू होगी।