जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने केंद्र सरकार के जनगणना के साथ जातीय गणना कराने का समर्थन किया है। हालांकि उन्होंने बिहार में कराई गई जातीय गणना पर सवाल भी उठाया। जनगणना में जातीय जनगणना को शामिल करने के केंद्र सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जन सुराज लंबे समय से कहता आ रहा है कि समाज के बारे में बेहतर जानकारी देने वाले किसी भी सर्वेक्षण, जनगणना में कोई समस्या नहीं है। लेकिन, जन सुराज का साफ कहना है कि सिर्फ जनगणना करने से समाज की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता।
जातीय जनगणना समाज में बदलाव लाने की जगह राजनीतिक मुद्दा बना-पीके
प्रशांत किशोर ने बिहार में हुई जातीय जनगणना का उदाहरण देते हुए कहा कि रिपोर्ट से पता चला है कि बिहार में दलित समुदाय के मात्र 3 प्रतिशत बच्चे ही 12वीं पास कर पाए हैं। लेकिन जनगणना रिपोर्ट सार्वजनिक होने के 2 साल बाद भी सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़े वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए कोई नई और ठोस योजना लागू नहीं की है। सिर्फ किताब खरीद लेने से आप विद्वान नहीं बन जाएंगे, आपको किताब को पढ़ना और समझना होगा। जातीय जनगणना के पक्ष और विरोध करने वाले दलों के लिए यह जनगणना के जरिए समाज की स्थिति में बदलाव लाने का ठोस प्रयास न होकर एक राजनीतिक मुद्दा ज्यादा लग रहा है।
नीतीश कुमार के स्वास्थ्य पर उठाया सवाल
पीके ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जिस तरह किसी सेवा में जाने से पहले मेडिकल जांच होती है, उसी तरह राज्य के मुखिया का भी स्वास्थ्य परीक्षण होना चाहिए। 13 करोड़ जनता की जिम्मेदारी एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में है, जिनका स्वास्थ्य खुद ठीक नहीं है।