ईसाई समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु, 88 वर्षीय पोप फ्रांसिस का सोमवार सुबह 07:35 बजे निधन हो गया। वेटिकन ने पुष्टि की है कि पोप ने अपने निवास स्थान पर अंतिम सांस ली। लंबे समय से बीमार चल रहे पोप डबल निमोनिया और किडनी फेलियर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था और नियमित रूप से रक्त चढ़ाया जा रहा था। उनके निधन की जानकारी वेटिकन के कैमरलेंगो कार्डिनल केविन फेरेल ने दी, जिन्होंने भावुक शब्दों में कहा, “आज सुबह रोम के बिशप फ्रांसिस प्रभु के घर लौट गए। उनका पूरा जीवन प्रभु और उनके चर्च की सेवा के लिए समर्पित रहा।”
शोक की लहर और श्रद्धांजलि
पोप फ्रांसिस के निधन पर वेटिकन ने नौ दिनों का राजकीय शोक घोषित किया है। विश्वभर के कैथोलिक समुदाय में गहरा दुख व्याप्त है। सेंट पीटर स्क्वायर में हजारों श्रद्धालु मोमबत्तियों, फूलों और प्रार्थनाओं के साथ उनके सम्मान में इकट्ठा हो गए हैं। उनके निधन से वैश्विक धार्मिक, सामाजिक और मानवीय आंदोलनों में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया है।
पोप फ्रांसिस: एक निष्ठावान सेवक
पोप फ्रांसिस, जिनका असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोलियो था, 13 मार्च 2013 को 266वें पोप बने थे। वे लैटिन अमेरिका के पहले पोप थे और अर्जेंटीना से आते थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने सादगी, करुणा और समाज के हाशिए पर रहने वालों के पक्ष में आवाज उठाने के लिए दुनिया भर में प्रसिद्धि पाई। उन्होंने पादरियों में सुधार, पर्यावरण की रक्षा और विभिन्न धर्मों के बीच संवाद को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए।
स्वास्थ्य गिरावट और अंतिम क्षण
फरवरी 2025 से उनकी सेहत में गिरावट शुरू हो गई थी। 14 फरवरी को ब्रोंकाइटिस के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद उन्हें सांस की गंभीर समस्या, किडनी विकार और फेफड़ों के फंगल इंफेक्शन से जूझना पड़ा। 23 मार्च को वे पहली बार अस्पताल की बालकनी से जनता के सामने मुस्कुराते हुए दिखे, लेकिन इसके बाद उनकी हालत और बिगड़ती गई।
नए पोप का चुनाव: एक पवित्र प्रक्रिया
पोप के निधन के साथ ही वेटिकन में नए पोप के चुनाव की प्रक्रिया, जिसे कॉन्क्लेव कहा जाता है, शुरू हो जाएगी। यह प्रक्रिया पोप के निधन के 15 से 20 दिन के भीतर शुरू होती है। इसके तहत 80 वर्ष से कम उम्र के सभी कार्डिनल वेटिकन सिटी में एकत्र होते हैं और सिस्टिन चैपल में एकांतवास में जाकर मतदान करते हैं।
कॉन्क्लेव की प्रक्रिया:
- सभा और शपथ: सभी कार्डिनल एकत्र होते हैं और गोपनीयता की शपथ लेते हैं।
- मतदान: हर कार्डिनल एक पर्ची पर अपने पसंदीदा प्रत्याशी का नाम लिखता है।
- बहुमत: दो-तिहाई बहुमत मिलने पर उम्मीदवार को पोप चुन लिया जाता है।
- धुआं संकेत: काले धुएं का मतलब है कि निर्णय नहीं हुआ, जबकि सफेद धुएं का मतलब है कि नया पोप चुन लिया गया है।
- घोषणा: एक वरिष्ठ कार्डिनल बालकनी पर आकर घोषणा करता है – “Habemus Papam!” (हमारे पास एक पोप है)
भारत की भूमिका और वैश्विक प्रभाव
इस बार के कॉन्क्लेव में भारत की भूमिका भी उल्लेखनीय होगी। दो भारतीय कार्डिनल्स को वोटिंग अधिकार प्राप्त था – कार्डिनल जॉर्ज एलेन्चेरी और कार्डिनल जॉर्ज कूवाकड। हालांकि एलेन्चेरी 19 अप्रैल को 80 वर्ष के हो जाने के कारण अब इस प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकेंगे। वहीं, 51 वर्षीय कार्डिनल जॉर्ज कूवाकड जो वेटिकन में अंतरधार्मिक संवाद के प्रमुख हैं, भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
नए युग की उम्मीद
कैथोलिक चर्च में नेतृत्व परिवर्तन केवल एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि वैश्विक सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। नए पोप से यह उम्मीद की जा रही है कि वह एक ऐसे युग की शुरुआत करें जो अधिक समावेशी, पर्यावरण के प्रति जागरूक और धार्मिक सहिष्णुता से परिपूर्ण हो।