सिर्फ पैसे की मांग से नहीं बनता भ्रष्टाचार का मामला, ठोस सबूत अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि केवल दागी धन की बरामदगी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि रिश्वत की स्पष्ट मांग और प्रस्ताव का सबूत न हो।

जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए यह स्पष्ट किया कि स्टाम्प विक्रेता को ‘लोक सेवक’ माना जा सकता है और उस पर पीसी अधिनियम के तहत कार्यवाही हो सकती है, लेकिन मौजूदा मामले में रिश्वत मांगने या स्वीकार करने का कोई ठोस प्रमाण नहीं था।

यह मामला एक स्टाम्प विक्रेता से जुड़ा था जिस पर 10 रुपये के स्टाम्प पेपर पर 2 रुपये अतिरिक्त मांगने का आरोप था। इस शिकायत के आधार पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने ट्रैप कार्यवाही की थी।

हालाँकि, अदालत ने कहा कि केवल दागी नोट की बरामदगी से यह साबित नहीं होता कि आरोपी ने रिश्वत की मांग की थी या उसे रिश्वत देने की कोई पेशकश की गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 और 13 (1)(D) के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि या तो रिश्वत की मांग की गई हो या प्रस्ताव दिया गया हो, और लोक सेवक को इस बात की जानकारी हो कि वह अवैध परितोषण स्वीकार कर रहा है।

कोर्ट ने कहा, “धारा 7 के तहत अपराध तब ही बनता है जब यह साबित हो कि लोक सेवक ने अवैध लाभ की पेशकश को जाना और स्वेच्छा से स्वीकार किया।”

इस फैसले के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी स्टाम्प विक्रेता को पीसी अधिनियम के तहत लगाए गए सभी आरोपों से बरी कर दिया।