डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया: पिछले सालों की तरह इस बार भी पंजाब और हरियाणा के पराली प्रबंधन के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। दोनों राज्यों में खुलेआम पराली जलाने की घटनाएं फिर से सामने आ रही हैं। दोनों ही राज्यों ने केंद्र सरकार और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को पराली प्रबंधन की योजना में दावा किया था कि पराली के एक-एक तिनके को जलने से रोका जाएगा, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है।
मशीनों और बायोडीकंपोजर पर आधारित योजनाएं विफल
पराली के प्रबंधन के लिए खेतों में मशीनों और बायोडीकंपोजर के इस्तेमाल से करीब आधे हिस्से को नष्ट करने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि, अब तक अधिकतर मशीनें कस्टमर हायरिंग सेंटरों से बाहर नहीं आई हैं, और न ही पराली नष्ट करने के लिए बायोडीकंपोजर का छिड़काव शुरू हुआ है। यह स्पष्ट है कि पराली प्रबंधन की योजना कागजों तक ही सीमित रह गई है, जबकि लोगों का जीवन प्रदूषण की चपेट में है।
केंद्र सरकार की करोड़ों की मदद भी बेअसर
केंद्र सरकार ने पराली प्रबंधन के लिए पंजाब और हरियाणा को करोड़ों रुपए की सहायता दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब को अब तक 1682 करोड़ और हरियाणा को 1082 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं। इसके अलावा, वर्ष 2024-25 के लिए भी पंजाब को 150 करोड़ और हरियाणा को 75 करोड़ रुपए मिले हैं। इसके बावजूद पराली जलाने की घटनाएं जारी हैं।
पराली जलाने के मामलों में बढ़ोतरी
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 3 अक्टूबर तक दोनों राज्यों में पराली जलाने के 315 मामले सामने आए हैं। इनमें 200 मामले अकेले पंजाब से हैं, जबकि 115 मामले हरियाणा के हैं। इससे साफ होता है कि पराली प्रबंधन के दावे जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो पाए हैं।
धान की जगह अन्य फसलें भी नहीं बोई जा सकीं
पराली प्रबंधन में एक और महत्वपूर्ण कदम किसानों को धान की जगह अन्य फसलों की बुआई के लिए प्रोत्साहित करना था, ताकि पराली की पैदावार कम हो सके। लेकिन, यह विकल्प भी कारगर साबित नहीं हुआ। इसके उलट, इस साल पराली की पैदावार पिछले साल के मुकाबले ज्यादा हुई है। पंजाब में पिछले साल 1.94 करोड़ टन पराली पैदा हुई थी, जबकि इस साल यह 1.95 करोड़ टन हो गई है। वहीं हरियाणा में पिछले साल 73 लाख टन पराली पैदा हुई थी, जो इस साल बढ़कर 81 लाख टन हो गई है।
दिल्ली-एनसीआर पर प्रदूषण का खतरा
अक्टूबर से दिसंबर के बीच दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है, और इसमें पराली जलने से उत्पन्न धुएं की हिस्सेदारी करीब 40 प्रतिशत होती है। ऐसे में, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं दिल्ली-एनसीआर के निवासियों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं।
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