सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा मदरसों को बंद करने की सिफारिश पर अंतरिम रोक लगा दी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने NCPCR की सिफारिश पर फिलहाल कोई कार्रवाई करने से इनकार किया। कोर्ट ने इसके साथ ही सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है, और इस मामले में चार हफ्ते बाद फिर से सुनवाई होगी।
यूपी सरकार के फैसले पर भी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस फैसले पर भी रोक लगाई है, जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने की बात कही गई थी। NCPCR ने यह सिफारिश इस आधार पर की थी कि कई मदरसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) का पालन नहीं कर रहे थे।
NCPCR की सिफारिश: सरकारी सहायता बंद करने का सुझाव
NCPCR ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जिन मदरसों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पालन नहीं हो रहा है, उन्हें दी जाने वाली सरकारी वित्तीय सहायता तब तक रोक दी जाए जब तक वे इस अधिनियम का पालन नहीं करते। आयोग ने यह भी कहा था कि सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर स्कूलों में दाखिला कराया जाए, ताकि उन्हें बुनियादी शिक्षा प्राप्त हो सके।
मदरसों में धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की कमी पर चिंता
NCPCR ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि मुस्लिम समुदाय के गरीब बच्चों पर अक्सर धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने का दबाव बनाया जाता है, जिससे वे धर्मनिरपेक्ष और नियमित शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। आयोग का कहना था कि सभी बच्चों को समान शैक्षणिक अवसर मिलना चाहिए, चाहे उनकी पारिवारिक स्थिति कैसी भी हो।
NCPCR ने नहीं कहा मदरसों को बंद करने के लिए
NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने स्पष्ट किया कि आयोग ने कभी भी मदरसों को बंद करने की सिफारिश नहीं की, बल्कि उनकी धनराशि पर रोक लगाने की सिफारिश की थी। उनका कहना था कि गरीब मुस्लिम बच्चों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा मिलनी चाहिए और मदरसों की जगह उन्हें औपचारिक विद्यालयों में दाखिला दिलाया जाना चाहिए।