नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में वरिष्ठ नागरिकों (सीनियर सिटीजन) के लिए केंद्र सरकार में समर्पित मंत्रालय की स्थापना की मांग वाली रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने याचिकाकर्ता को उचित सरकारी विभागों के समक्ष अपनी मांग रखने की अनुमति दी है।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने की। याचिकाकर्ता एडवोकेट जी प्रियदर्शी, जो एक वकील और सोशल एक्टिविस्ट हैं, ने तर्क दिया कि भारत में बढ़ती वृद्ध आबादी के मद्देनज़र एक समर्पित मंत्रालय की आवश्यकता है।
याचिका में बताया गया कि भारत में वर्तमान में 60 वर्ष से अधिक आयु के 149 मिलियन (14.9 करोड़) नागरिक हैं, और “इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023” के अनुसार, वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर 347 मिलियन (34.7 करोड़) हो जाएगी। इस बढ़ती वृद्ध आबादी के स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सरकार को एक विशेष मंत्रालय स्थापित करना चाहिए।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि वृद्ध नागरिक कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनमें स्वास्थ्य, सामाजिक संरचना, वित्तीय अस्थिरता और निर्भरता शामिल हैं। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के अधिकार को ध्यान में रखते हुए, सरकार की जिम्मेदारी है कि वह वृद्ध नागरिकों के कल्याण के लिए विशेष नीति और योजनाएं तैयार करे।
हालांकि, अदालत ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए स्पष्ट किया कि न्यायालय इस प्रकार के नीति-निर्धारण मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि याचिकाकर्ता को संबंधित सरकारी विभागों के सामने अपनी मांग रखनी चाहिए और अदालत से मंत्रालय बनाने के निर्देश की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने जब दलील दी कि वे याचिका में संशोधन करके पुनः पेश करेंगे, तो अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसी याचिका पर विचार करना अदालत का कार्यक्षेत्र नहीं है।
इस फैसले के बाद, याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने का निर्णय लिया और अब वे सरकार के संबंधित मंत्रालयों के समक्ष अपनी मांग प्रस्तुत करेंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में वृद्ध आबादी की तेजी से बढ़ती संख्या को देखते हुए एक समर्पित मंत्रालय या विभाग की आवश्यकता पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए।