जेलों में जाति-आधारित भेदभाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब,केंद्र एवं राज्य सरकारों को जारी किया नोटिस

Anupam Kumar
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देश: देश की सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जेलों में जाति-आधारित भेदभाव का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों से जवाब मांगा है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि यूपी, पश्चिम बंगाल, झारखंड सहित 11 राज्यों की जेलों में जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा दिया जाता है।सीजेआई डीवाई चंद्रचूड, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता एस मुरलीधर की दलीलों पर ध्यान दिया। उन्होंने बताया कि 11 राज्यों की जेल नियमावली अपनी जेलों के भीतर काम के बंटवारे में भेदभाव करती है और जाति के अधार पर कैदियों को रखा जाना तय होता है।

वरिष्ठ वकील ने कहा कि कुछ गैर अधिसूचित आदिवासियों और आदतन अपराधियों से अलग तरीके से बर्ताव किया जाता है और उनके साथ भेदभाव होता है। इस पर कोर्ट ने मुरलीधर से राज्यों से जेल नियमावलियों को एकत्र करने को कहा है और याचिका को चार सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

वहीं,पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और अन्य राज्यों को नोटिस जारी किया है। साथ ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह महाराष्ट्र के कल्याण की मूल निवासी सुकन्या शांता द्वारा दायर जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दों से निपटने में कोर्ट की सहायता करें।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता का कहना है कि जेल की बैरकों में मानव श्रम के आवंटन के संबंध में जाति आधारित भेदभाव है और इस तरह का भेदभाव गैर अधिसूचित आदिवासियों और आदतन अपराधियों के साथ है। केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी करें।’

हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मैंने जाति के आधार पर भेदभाव के संबंध में नहीं सुना है। विचाराधीन कैदियों और दोषियों को ही अलग किया जाता है।

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