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झारखंड में आदिवासी नाबालिगों के बलात्कार और नवजात तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला : NCPCR की याचिका खारिज, कहा कार्रवाई के लिए आयोग स्वतंत्र

2018 में झारखंड से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया था, जिसमें नाबालिग बलात्कार पीड़ितों के बच्चों को जन्म के बाद बेचा जा रहा था। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने इस मामले का संज्ञान लिया और जांच शुरू की। वहीं  NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने बताया कि 2019 में आयोग को दो नाबालिग आदिवासी लड़कियों के बयान मिले, जिन्होंने अलग-अलग घटनाओं में अपने साथ हुए बलात्कार की जानकारी दी। इन लड़कियों को रांची के मिशनरी ऑफ चैरिटी के बाल गृह में रखा गया, जहाँ उन्होंने अपने बच्चों को जन्म दिया। लेकिन नवजात बच्चों को मिशनरी होम में ही रखा गया, जबकि लड़कियों को उनके घर भेज दिया गया। इस गंभीर मामले में कोई FIR दर्ज नहीं की गई।

दुमका जिले में दो आदिवासी नाबालिग लड़कियों के साथ हुए बलात्कार से जुड़ा मामला

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2024 में झारखंड के दुमका जिले में दो आदिवासी नाबालिग लड़कियों के साथ हुए बलात्कार और नवजात शिशुओं की कथित तस्करी से जुड़े मामले में NCPCR (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि NCPCR खुद अपने अधिनियम के तहत कार्रवाई करने के लिए सक्षम है और इस मामले में कोर्ट की निगरानी की जरूरत नहीं है।

NCPCR अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने x पर दी प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर इस विषय में अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद आयोग ने झारखंड सरकार को नोटिस जारी कर नाबालिग लड़कियों के बयान की प्रति भेजी है और FIR दर्ज करने का निर्देश दिया है। साथ ही, उन्होंने अन्य राज्यों से भी ऐसे ही मामलों की जानकारी मांगी है, जहां नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार और तस्करी के मामले सामने आए हैं।

राज्य सरकार पर गंभीर आरोप

कानूनगो ने इस मुद्दे पर झारखंड सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार के पास सैकड़ों ऐसे मामलों का डेटा है, लेकिन मदर टेरेसा के नाम से जुड़ी धार्मिक संस्था की संलिप्तता के कारण मामले को दबा दिया गया। झारखंड के दुमका में दो आदिवासी नाबालिग पीड़ित लड़कियों ने अपने बयान में कहा था कि बलात्कार के बाद वे गर्भवती हो गई थीं और डॉक्टर की सलाह पर उन्हें रांची के मिशनरी ऑफ चैरिटी (MOC) में भर्ती करवाया गया था। वहाँ पैदा हुए नवजात शिशुओं को संस्था ने अपने पास रख लिया था और बाद में कथित तौर पर उन्हें बेच दिया गया।

NCPCR ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका

NCPCR ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें इस मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की गई थी। आरोप था कि झारखंड में नाबालिग आदिवासी लड़कियों के साथ बलात्कार और उनके बच्चों की तस्करी जैसे गंभीर अपराध हो रहे हैं और राज्य सरकार इन मामलों को दबाने का प्रयास कर रही है। NCPCR की जांच में सामने आया था कि ऐसी सैकड़ों नाबालिग बलात्कार पीड़िताएं हैं, जिनके मामले दबा दिए गए हैं।

मीडिया की भूमिका पर सवाल

प्रियंक कानूनगो ने कोर्ट के निर्णय के बाद मीडिया के एक वर्ग पर भी सवाल उठाए। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ मीडिया आउटलेट्स ने कोर्ट के आदेश के बाद उनकी आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन पीड़ित लड़कियों के बयान और बच्चा तस्करी की पुष्टि पर आधारित जानकारी को जनता तक पहुँचाने में विफल रहे। कानूनगो ने कहा कि पीड़ित लड़कियों को न्याय दिलाने के लिए उठाए गए कदमों और झारखंड सरकार को भेजे गए नोटिस की फॉलोअप रिपोर्ट को मीडिया में प्रमुखता नहीं दी गई।

धार्मिक आधार पर कानून तोड़ने की छूट नहीं

NCPCR अध्यक्ष ने अपने बयान में कहा कि “भारत एक सेक्युलर देश है और किसी को भी धार्मिक आधार पर कानून तोड़ने की छूट नहीं दी जा सकती।” उन्होंने भरोसा जताया कि पीड़ित बच्चों को न्याय जरूर मिलेगा। साथ ही, उन्होंने उन सभी पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को धन्यवाद दिया जिन्होंने इस मामले की सच्चाई को उजागर करने का काम किया और देश के सामने सही जानकारी रखी।

यह मामला एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है, अब देखना यह होगा कि झारखंड सरकार और अन्य संबंधित संस्थाएं इस मामले में किस प्रकार की कार्रवाई करती हैं, और पीड़ित नाबालिग लड़कियों को न्याय दिलाने की दिशा में क्या कदम उठाए जाते हैं।

KK Sagar
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