झारखण्ड की राजनीति को गुरुवार को एक गहरा आघात लगा जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री एवं पूर्व सांसद चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे का निधन हो गया। वे 87 वर्ष के थे और पिछले करीब डेढ़ महीने से दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में इलाजरत थे। गुरुवार शाम उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि पूरा झारखंड राजनीतिक, सामाजिक और श्रमिक आंदोलनों के एक मजबूत स्तंभ को खो बैठा है।
शुरुआत एक मुखिया से – सियासत तक का सफर
ददई दुबे का जन्म 2 जनवरी 1946 को गढ़वा जिले के कांडी प्रखंड अंतर्गत चोका गांव में हुआ था। साधारण परिवार में जन्मे दुबे जी का जीवन संघर्ष और सेवा की मिसाल रहा। उन्होंने 1973 में पंचायत स्तर से राजनीति में कदम रखा और 1973 से 1985 तक बलियारी पंचायत के मुखिया रहे।
ग्रामीण स्तर से शुरू हुआ यह सफर धीरे-धीरे राज्य और फिर देश की राजनीति में पहुंचा। 1980 में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विधानसभा चुनाव लड़ा, हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली। लेकिन इससे उनका हौसला टूटा नहीं। 1985 में कांग्रेस के टिकट पर विश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र से जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने।
इसके बाद वे 1990, 2000 और 2009 में भी इसी क्षेत्र से जीतते रहे। उनकी गिनती एक जमीन से जुड़े नेता के रूप में होती रही, जो लोगों से सीधा संवाद करते थे।
मंत्री पद से सांसद तक की भूमिका
2000 में, जब झारखंड राज्य का गठन नहीं हुआ था और वह अभी बिहार का हिस्सा था, तब उन्हें बिहार सरकार में श्रम एवं रोजगार मंत्री बनाया गया। झारखंड राज्य बनने के बाद भी वे कई अहम विभागों के मंत्री बने। उन्होंने श्रम, ग्रामीण विकास, पंचायती राज और रोजगार जैसे विभागों में काम किया।
वर्ष 2004 में उन्होंने धनबाद लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया। सांसद बनने के बाद उन्होंने संसद की कोयला एवं इस्पात समिति, कोयला और खान परामर्शदात्री समिति में भी सक्रिय भूमिका निभाई। उस दौरान कोयला क्षेत्र से जुड़े कई मसलों को उन्होंने संसद में प्रभावी ढंग से उठाया।
मजदूरों के हक की आवाज – इंटक में भी मजबूत पकड़
ददई दुबे का नाम सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं था, वे इंटक (Indian National Trade Union Congress) के भी प्रमुख नेता थे। मजदूरों, खासकर कोयला क्षेत्र के श्रमिकों की समस्याओं को लेकर वे हमेशा मुखर रहे। उन्होंने वेंकट कोलियरी में 315 से अधिक मजदूरों को रोजगार दिलवाया और सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्होंने कभी विकास निधि या ठेका कार्यों में कमीशन नहीं लिया।
उनकी छवि एक बेदाग और ईमानदार नेता की रही, जो आम लोगों के लिए हर समय उपलब्ध रहते थे।
विवादों में भी रहे लेकिन छवि रही मजबूत
हालांकि उनका राजनीतिक जीवन पूरी तरह शांत नहीं रहा। 2014 में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए, जिसके चलते उन्हें राज्य मंत्रिमंडल से हटा दिया गया। वर्ष 2022 में उनके और उनके पुत्रों पर मारपीट का भी मामला दर्ज किया गया था, लेकिन अदालत से वे बाद में बरी हो गए।
इन विवादों के बावजूद जनता और कार्यकर्ताओं में उनका भरोसा कम नहीं हुआ।
पार्थिव शरीर शुक्रवार को पहुंचेगा रांची
परिजनों ने जानकारी दी है कि ददई दुबे का पार्थिव शरीर शुक्रवार, 12 जुलाई को सुबह 10 बजे दिल्ली से रांची एयरपोर्ट लाया जाएगा। इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए कांग्रेस कार्यालय में रखा जाएगा, जहां पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। अंतिम संस्कार की प्रक्रिया उनके गृह जिले गढ़वा में संपन्न होने की संभावना है।
ददई दुबे: एक नजर में
वर्ष उपलब्धि
1946 चोका गांव (गढ़वा) में जन्म
1973-85 बलियारी पंचायत के मुखिया
1985 कांग्रेस टिकट पर पहली बार विधायक (विश्रामपुर)
1990, 2000, 2009 पुनः विधायक निर्वाचित
2000 श्रम एवं रोजगार मंत्री (बिहार सरकार)
2004 धनबाद से सांसद निर्वाचित
2013 झारखंड सरकार में मंत्री बने
2022 विवादों में आए लेकिन न्यायालय से बरी
राजनीतिक, सामाजिक और श्रमिक हितों के प्रहरी को श्रद्धांजलि
झारखंड प्रदेश कांग्रेस समेत विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। कांग्रेस नेताओं ने उन्हें “मजदूरों का सच्चा हमदर्द” और “राजनीतिक ईमानदारी की मिसाल” बताया।
उनकी सादगी, संघर्षशीलता और जनसेवा को सदैव याद किया जाएगा।