जमशेदपुर : आज देशभर में ईद-उल-अजहा का पर्व मनाया जा रहा है। इस त्योहार को बकरीद भी कहा जाता है। ईद-उल- फितर के बाद मुसलमानों का यह दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है। इस मौके पर लौहनगरी में भी बकरीद की धूम है। जमशेदपुर में भी तमाम मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की जा रही है। पर्व को लेकर हर जगह कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। इस्लाम धर्म की मान्यता के हिसाब से आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद हुए। हजरत मोहम्मद के वक्त में ही इस्लाम ने पूर्ण रूप धारण किया और आज जो भी परंपराएं या तरीके मुसलमान अपनाते हैं। वह पैगंबर मोहम्मद के वक्त के ही हैं। लेकिन पैगंबर मोहम्मद से पहले भी बड़ी संख्या में पैगंबर आए और उन्होंने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया। कुल 1 लाख 24 हज़ार पैगंबरों में से एक थे हजरत इब्राहिम। इन्हीं के दौर से कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ। हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे। उनके बेटे का नाम इस्माइल था। हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को बहुत प्यार करते थे। एक दिन हजरत इब्राहिम को ख्वाब आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कीजिए। इस्लामिक जानकार बताते हैं कि अल्लाह का हुक्म था और हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे को कुर्बान करने का फैसला लिया। हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे इस्माइल की गर्दन पर छुरी रख दी। लेकिन इस्माइल की जगह एक बकरा आ गया। जब हज़रत इब्राहिम ने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो उनके बेटे इस्माइल सही-सलामत खड़े थे।कहा जाता है कि यह महज एक इम्तेहान था और हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुक्म पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। इस तरह इस तरह जानवरों की कुर्बानी की यह परंपरा शुरू हुई।
लौहनगरी में धूमधाम से मनाया जा रहा बकरीद का त्योहार, मस्जिदों में अदा की गई विशेष नमाज

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