साहिबगंज जिले के ऐतिहासिक गांव भोगनाडीह में हुल क्रांति दिवस हर्ष और गर्व के साथ मनाया जा रहा है। यह वही दिन है जब 1855 में वीर शहीद सिद्धो-कान्हू ने अपने भाइयों चांद और भैरव के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत और जमींदारी प्रथा के खिलाफ संथाल हुल आंदोलन की शुरुआत की थी।
संथाल परगना के इस आंदोलन को भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली आवाज भी माना जाता है, जिसे भोगनाडीह से शुरू किया गया था। अमर शहीद सिद्धो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू के अनुसार, इस जनआंदोलन में 15,000 से अधिक संथाल आदिवासियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। वहीं सिद्धो-कान्हू और चांद-भैरव जैसे महान योद्धाओं को अंग्रेजों ने 26 जुलाई 1855 को पंचकठिया के बरगद के पेड़ से फांसी पर लटका दिया था।
हर साल की तरह इस वर्ष भी भोगनाडीह में हुल दिवस मनाने के लिए हजारों की संख्या में लोग जुटे, लेकिन इस बार प्रशासन से अनुमति नहीं मिलने के कारण शहीद परिवारों और ग्रामीणों में भारी आक्रोश देखा गया।
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि सरकार और प्रशासन स्वतंत्रता संग्राम के इन वीर नायकों के बलिदान को उचित सम्मान नहीं दे रहे हैं।
ऐतिहासिक महत्व
- 30 जून 1855: हुल आंदोलन की शुरुआत
- नेतृत्व: सिद्धो-कान्हू, चांद-भैरव
- स्थान: भोगनाडीह, संथाल परगना
- बलिदान: 15,000 से अधिक आदिवासी शहीद
- 26 जुलाई 1855: पंचकठिया में वीरों को दी गई फांसी

