बिहार स्टेट माइनिंग कार्पोरेशन द्वारा राज्य की विभिन्न इंडस्ट्रीज के लिए रियायती दरों पर आवंटित लिंकेज कोयला उत्तर प्रदेश की मंडियों में अवैध रूप से ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है। इस अवैध कारोबार के कारण भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल), केंद्र सरकार और बिहार सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
लिंकेज कोयले का अवैध धंधा
जानकारी के अनुसार, बीसीसीएल की मोदीडीह कोलियरी का लिंकेज कोयला 8200 रुपये प्रति टन और धनसार कोलियरी का कोयला 8600 रुपये प्रति टन के भाव पर खुले बाजार में बेचा जा रहा है। जबकि इस कोयले की फ्लोर प्राइस केवल 5600 रुपये प्रति टन है।
बिहार स्टेट माइनिंग कार्पोरेशन के नाम पर राज्य की फैक्ट्रियों के लिए लिंकेज के माध्यम से आवंटित यह कोयला बीसीसीएल की विभिन्न कोलियरियों से उठाया जा रहा है। लेकिन फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होने के बजाय, यह कोयला सीधे उत्तर प्रदेश की मंडियों में पहुंच रहा है।
कैसे हो रही हेराफेरी?
अवैध कारोबार की प्रक्रिया काफी संगठित तरीके से चल रही है। बीसीसीएल की कोलियरियों से कोयला लोड करने के बाद, यह डेहरी में पहुंचता है। वहां कोयले के कागजात बदले जाते हैं और 200 रुपये के जीएसटी पेपर लगाकर इसे उत्तर प्रदेश की मंडियों में भेज दिया जाता है।
डेहरी में फर्जी दस्तावेज तैयार किए जाते हैं, जिससे कोयले की गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन बदल दिया जाता है। जानकार बताते हैं कि यह गोरखधंधा टोल नाकों की जांच से भी आसानी से उजागर हो सकता है।
जीपीएस ट्रैकिंग का अभाव
लिंकेज कोयले की ट्रांसपोर्टिंग के लिए जिन गाड़ियों का इस्तेमाल हो रहा है, उनमें जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) नहीं लगा है। यह नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है क्योंकि कोयले की ट्रांसपोर्टिंग में जीपीएस का होना अनिवार्य है। इसके अलावा, लिंकेज कोयले को फैक्ट्रियों में खाली करते समय फोटोग्राफ अपलोड करने की प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया जा रहा है।
सरकार और बीसीसीएल को नुकसान
लिंकेज कोयले की ऊंची कीमतों पर अवैध बिक्री से बीसीसीएल को भारी वित्तीय नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही, केंद्र और राज्य सरकारें भी राजस्व से वंचित हो रही हैं।
मुख्य बिंदु:
- रियायती दर: लिंकेज कोयले की फ्लोर प्राइस 5600 रुपये प्रति टन है।
- अवैध बिक्री: यह कोयला उत्तर प्रदेश की मंडियों में 8200-8600 रुपये प्रति टन के भाव पर बिक रहा है।
- फर्जी दस्तावेज: डेहरी में कोयले के कागजात बदले जाते हैं और गाड़ियों की एंट्री होती है।
- ट्रैकिंग का अभाव: कोयला ढोने वाली गाड़ियों में जीपीएस नहीं है, जो नियमानुसार अनिवार्य है।
सरकार की चुप्पी पर सवाल
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह अवैध कारोबार स्थानीय प्रशासन, माइनिंग कार्पोरेशन और बीसीसीएल अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। इस गोरखधंधे पर कार्रवाई न होने से सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
समाधान और अपेक्षित कार्रवाई
👉 सख्त निगरानी: कोयले की ट्रांसपोर्टिंग में जीपीएस का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से लागू किया जाए।
👉 जांच और कार्रवाई: टोल नाकों पर गाड़ियों की जांच की जाए और फर्जी दस्तावेज तैयार करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो।
👉 पारदर्शिता: लिंकेज कोयले की ट्रांसपोर्टिंग और उपयोग को ऑनलाइन ट्रैकिंग के माध्यम से मॉनिटर किया जाए।