डिजिटल डेस्क/जमशेदपुर : टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक (एमडी) और सीईओ टी.वी. नरेंद्रन ने कर्मचारियों को भविष्य का मंत्र देते हुए कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से डरने की नहीं, बल्कि उसे सीखने की जरूरत है। उन्होंने 80 के दशक का एक उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे कंप्यूटर आने पर नौकरी खोने से डरे टाइपिस्ट भी खुद को बदलकर एसएपी (सैप) एक्सपर्ट बन गए थे। नरेंद्रन ने साफ शब्दों में कहा कि जो तकनीक के साथ बदलेगा, वही टिकेगा और यही टाटा स्टील की सफलता का राज भी है।
नरेंद्रन ने अपने करियर की शुरुआत को याद करते हुए बताया कि 1988 में जब उन्होंने टाटा स्टील ज्वाइन किया था, तब यहां 80 टाइपिस्ट चिट्ठियां टाइप करते थे। जब कंपनी में कंप्यूटर लाए गए, तो उन सभी को अपनी नौकरी जाने का डर सताने लगा था। लेकिन नरेंद्रन ने कहा कि कंपनी ने उन्हें बदलने का मौका दिया। जिन्होंने उस बदलाव को स्वीकार किया, नया कौशल सीखा और खुद को निखारा, वे आगे चलकर कंपनी में एसएपी जैसे सॉफ्टवेयर के एक्सपर्ट बने।
उन्होंने सभी को आश्वस्त करते हुए कहा कि एआई को एक खतरे की तरह नहीं देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि तकनीक हमेशा नौकरियां खत्म करने के लिए नहीं आती, यह तो उत्पादकता और कार्यक्षमता बढ़ाने का एक बेहतरीन साधन है। उन्होंने कर्मचारियों को सलाह दी कि वे एआई को एक अवसर के रूप में देखें।
सीईओ ने वैश्विक व्यापार की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमें सस्टेनेबल यानी पर्यावरण के अनुकूल स्टील उत्पादन के लिए तैयार रहना होगा। इन चुनौतियों से निपटने के लिए टाटा स्टील अब रीसाइक्लिंग पर बड़ा दांव लगा रही है। कंपनी ने लुधियाना और रोहतक में स्टील स्क्रैप (कबाड़) प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किए हैं। नरेंद्रन ने भविष्यवाणी की कि अगले 20-30 वर्षों में रीसाइक्लिंग का क्षेत्र खनन से भी बड़ा हो जाएगा।