
मिरर मीडिया : पटना हाई कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला लेते हुए जातिगत आधारित गणना और आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को रद्द कर दिया है। जिसके बाद नीतीश सरकार को बड़ी राहत मिली है।
बता दें कि पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विनोद चंद्रन एवं न्यायाधीश पार्थ सारथी की खण्डपीठ के समक्ष यह मामला 10:30 बजे सूचीबद्ध था, लेकिन अदालत ने अपना फैसला दोपहर 1:00 बजे सुनाया। इस मामले पर 17 अप्रैल को पहली बार सुनवाई हुई थी। हाई कोर्ट ने चार मई को जाति आधारित गणना पर रोक लगा दी थी।
कोर्ट के इस फैसले के बाद अब बिहार में फिर से जातिगत जनगणना को हरी झंडी मिल गई है।
दअरसल जातिगत जनगणना के खिलाफ याचिकाओं में कई बिंदुओं को प्रदर्शित किया गया था और कहा गया था की सरकार जातिगत जनगणना के जरिए जनता के निजता के आधिकार का उल्लंघन कर रही है । साथ ही इस जनगणना में संवेदनशील जानकारियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा सरकार पर ये आरोप लगें थे कि
सरकार ने आकस्मिक निधि से 500 करोड़ इस सर्वेक्षण के लिए इस्तेमाल किया है, जो जनता के धन का दुरुपयोग है और संविधान इसकी अनुमती नही देता है।
वहीं राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि यह राज्य का नीतिगत निर्णय है और इसके लिए बजटीय प्रावधान किया गया है। सरकार ऐसी कोई जानकारी नहीं मांग रही है जिससे निजता के अधिकार का हनन होगा। राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के बारे में जानकारी इकट्ठा कर कल्याणकारी योजनाओं का लाभ विभिन्न वर्गों तक पहुंचा सके। सरकार ने कहा था कि जातीय गणना का पहला चरण समाप्त हो चुका है और दूसरे चरण का 80 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है, ऐसे में इसे रोकने का कोई औचित्य नहीं है।