नई दिल्ली। भारत की न्यायपालिका आज एक महत्वपूर्ण बदलाव की गवाह बनेगी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत आज भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह राष्ट्रपति भवन में होगा, जहाँ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएँगी। शपथ ग्रहण के बाद वे देश की सर्वोच्च अदालत के मुखिया के रूप में कार्यभार संभालेंगे और उनका कार्यकाल लगभग 15 महीनों का होगा, जो फरवरी 2027 तक चलेगा।
हरियाणा के हिसार जिले के एक साधारण परिवार में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत आज भारतीय न्याय व्यवस्था के शिखर पर पहुँच रहे हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद शिक्षा और न्यायिक सेवा के क्षेत्र में उन्होंने अपनी मजबूत छाप छोड़ी। वकालत से शुरुआत करते हुए वे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचे। कानून की पढ़ाई में भी उनका प्रदर्शन असाधारण रहा, जिसने उनकी न्यायिक सोच को और मजबूत दिशा दी।
अपने न्यायिक करियर में उन्होंने कई संवैधानिक और ऐतिहासिक मामलों में भूमिका निभाई है। अनुच्छेद 370, राजद्रोह कानून की समीक्षा, मतदाता सूची पुनरीक्षण और नागरिक अधिकारों जैसे मामलों में उनके फैसले हमेशा चर्चा में रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत को न्याय और संविधान की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध न्यायाधीश के रूप में देखा जाता है।
प्रधान न्यायाधीश बनने के बाद उनके सामने कई बड़ी चुनौतियाँ होंगी — सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों को कम करना, आम नागरिकों के लिए न्याय को अधिक सुलभ बनाना और न्यायिक प्रक्रिया को समयबद्ध एवं प्रभावी बनाना उनमें प्रमुख हैं। इसके साथ ही संवैधानिक संरचना और नागरिक स्वतंत्रता से जुड़े मामलों का भी भार अब उन्हीं पर होगा।
कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल न्यायपालिका की कार्यशैली में कई महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। उनकी न्यायिक विचारधारा और पूर्व फैसलों को देखते हुए यह उम्मीद जताई जा रही है कि वे न्यायपालिका की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और नागरिक अधिकारों के प्रश्नों पर मजबूत और निर्णायक रुख अपनाएँगे।
आज का दिन सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय के लिए नहीं बल्कि पूरे देश की न्याय व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होने वाला है। जैसे ही जस्टिस सूर्यकांत शपथ लेंगे, भारत की न्यायपालिका एक नए अध्याय में प्रवेश करेगी — और अब पूरा देश इस बात पर निगाह लगाए हुए है कि आने वाले समय में न्यायिक ढांचा किस दिशा में आगे बढ़ता है।

