जमुई-बांका सहित बिहार के 20 जिलों में टोपोलैंड सर्वेक्षण शुरू: नदियों किनारे भूखंड का लेखा-जोखा

KK Sagar
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बिहार सरकार ने भूमि विवादों को सुलझाने और भूमि रिकॉर्ड को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए टोपोलैंड सर्वे (Topoland Survey) शुरू करने का निर्णय लिया है। इस तकनीक का उपयोग 20 जिलों, जिनमें बांका और जमुई शामिल हैं, में किया जाएगा।

क्या है टोपोलैंड सर्वेक्षण?

टोपोलैंड सर्वे एक आधुनिक भूमि सर्वेक्षण पद्धति है, जिसमें ड्रोन, जीपीएस (GPS), इलेक्ट्रॉनिक टोटल स्टेशन (ETS) और जियो-मैपिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से किसी भी क्षेत्र की सटीक माप की जा सकती है, जिससे भूमि विवादों में कमी आएगी और सरकारी रिकॉर्ड अधिक सटीक होंगे।

टोपोलैंड: नदियों के किनारे बनने वाली नई भूमि का सर्वेक्षण

टोपोलैंड वह जमीन होती है, जो अधिकांशतः नदियों के किनारे पाई जाती है और जिसका अब तक कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है। यह भूमि बारिश और बाढ़ के कारण लगातार बदलती रहती है, जिससे नए भूखंडों का निर्माण होता है। कई बार नदियां अपने रास्ते बदल लेती हैं, जिससे कुछ इलाकों में नई जमीन उभरती है, जबकि कुछ इलाकों में भूमि कटाव से गायब हो जाती है।

बिहार सरकार का यह सर्वेक्षण मुख्य रूप से ऐसी ही टोपोलैंड भूमि पर केंद्रित होगा, ताकि इन नए बने भूखंडों का रिकॉर्ड तैयार किया जा सके और भूमि स्वामित्व से जुड़े विवादों को सुलझाया जा सके।

टोपोलैंड सर्वेक्षण में उपयोग की जाने वाली तकनीकें

  1. ड्रोन सर्वेक्षण:
    • ड्रोन कैमरों की मदद से जमीन का एरियल मैप तैयार किया जाता है।
    • यह तकनीक परंपरागत सर्वेक्षण की तुलना में तेज़ और अधिक सटीक होती है।
  2. जीपीएस (GPS) मैपिंग:
    • ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) के जरिए भूमि की सटीक स्थिति निर्धारित की जाती है।
    • इससे भूखंडों की सीमा को स्पष्ट रूप से चिह्नित किया जा सकता है।
  3. इलेक्ट्रॉनिक टोटल स्टेशन (ETS):
    • यह एक आधुनिक उपकरण है, जो भूमि के आयामों को डिजिटल रूप से मापता है।
    • इसके माध्यम से ऊँचाई, गहराई और अन्य मापदंडों की सटीक गणना की जाती है।
  4. जियो-मैपिंग:
    • पूरे क्षेत्र का डिजिटल नक्शा तैयार किया जाता है, जिसे बाद में ऑनलाइन रिकॉर्ड के रूप में रखा जा सकता है।
    • इससे भूमि रिकॉर्ड डिजिटल रूप से सुरक्षित रहेंगे और किसी भी समय उनका पुनः परीक्षण किया जा सकेगा।

टोपोलैंड सर्वेक्षण से होने वाले लाभ

भूमि विवादों का समाधान – ज़मीन के सही सीमांकन से मालिकाना हक को लेकर झगड़े कम होंगे।
भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण – सरकारी दस्तावेज़ों में पारदर्शिता आएगी और लोग ऑनलाइन अपनी ज़मीन की स्थिति देख सकेंगे।
कृषि और इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार – सही मापी से सरकारी योजनाओं को लागू करने में आसानी होगी।
राजस्व प्रशासन को मजबूती – ज़मीन से जुड़े टैक्स और सरकारी नीतियों को बेहतर ढंग से लागू किया जा सकेगा।
तेज़ और सटीक सर्वेक्षण प्रक्रिया – पारंपरिक तरीके से सर्वे करने में कई साल लगते थे, लेकिन टोपोलैंड तकनीक से यह काम महीनों में पूरा हो सकता है।

किन जिलों में किया जाएगा सर्वेक्षण?

बांका और जमुई के अलावा 18 अन्य जिलों में भी यह सर्वे किया जाएगा। सरकार का उद्देश्य पूरे बिहार में भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल बनाना है, जिससे भविष्य में किसी भी प्रकार के विवाद और धोखाधड़ी से बचा जा सके।

सरकार की योजना और दिशा-निर्देश

बिहार सरकार ने सभी जिलों के संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे टोपोलैंड सर्वेक्षण जल्द से जल्द पूरा करें और भूमि मालिकों को उनकी सटीक संपत्ति का डिजिटल प्रमाण पत्र उपलब्ध कराएं।

निष्कर्ष:
टोपोलैंड सर्वे बिहार में भूमि प्रबंधन के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है। यह राज्य के लाखों किसानों और भूमि मालिकों को सही जानकारी और विवाद मुक्त संपत्ति का लाभ देने में मदद करेगा।

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