जमशेदपुर : देश के ई कॉमर्स व्यापार में विदेशी धन पोषित ई कॉमर्स कंपनियों की लगातार मनमानी और नियम व कानूनों का उल्लंघन तथा जीएसटी की दिन प्रतिदिन बढ़ रही जटिलता ने देश के व्यापारी समुदाय को बर्बादी के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है और बार-बार इन मुद्दों पर आवाज उठाने के बाद भी केंद्र व राज्य सरकारों ने जिस प्रकार की चुप्पी साध रखी है उससे देश भर के व्यापारी बेहद नाराज और आक्रोश में हैं। इस स्थिति को और अधिक बर्दाश्त न करने की घोषणा के साथ कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने इन ज्वलंत मुद्दों सहित अन्य व्यापारिक मुद्दों को लेकर एक राष्ट्रव्यापी संघर्ष अभियान छेड़ने की घोषणा की है। जिसकी रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए कैट ने देश के सभी राज्यों के प्रमुख व्यापारी नेताओं का एक “राष्ट्रीय सम्मेलन” आगामी 11-12 जनवरी को उत्तर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी कानपुर में बुलाया है। इस सम्मेलन में सभी राज्यों व विभिन्न उत्पादों के राष्ट्रीय संगठनों ने लगभग 100 व्यापारी नेता भाग लेंगे।
राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल और राष्ट्रीय सचिव सुरेश सोन्थालिया ने कहा कि ऐसा लगता है कि देश की सभी सरकारों ने विदेशी ई कॉमर्स कंपनियों के आगे घुटने टेक दिए हैं। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल ने पिछले दो वर्षों से विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर व सार्वजनिक रूप से ई कॉमर्स कंपनियों को चेतावनी देने में कोई कसर नहीं छोड़ी और न मानने पर क़ानून अपना काम करेगा, की बात भी जोर शोर से कही। लेकिन अभी तक क़ानून के काम करने का इंतज़ार देश के व्यापारी कर रहे है। क्या कारण है की नियम व क़ानून की अवहेलना, ई कॉमर्स पर गांजा सहित अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं का बिकना, केंद्र व राज्य सरकारों को ई कॉमर्स कंपनियों द्वारा जीएसटी के राजस्व की क्षति पहुंचाने के सबूत दिए जाने के बाद भी सरकारों के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी और सभी सरकारें चुप हैं। ऐसा साफ़ दिखाई देता है कि सरकारों पर देसी व विदेशी दबाव है तभी तो खुलकर इन कंपनियों द्वारा मनमानी की जा रही है और सभी स्तरों पर “रोम जल रहा है और नीरो बंसी बजा रहा है” जैसी स्तिथि बनी हुई है।
खंडेलवाल और सोन्थालिया ने कहा की वर्ष 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जिस जीएसटी के विषय में कैट को बताया था और जिस जीएसटी की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी, जीएसटी का वर्तमान स्वरूप ठीक उसके उलट बेहद जटिल हो गया है। जेटली के देहावसान के बाद जीएसटी कॉउन्सिल ने व्यापारियों से सलाह मशवरा करना छोड़ दिया है और ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं जिनका कोई जमीनी आधार नहीं है।
टेक्सटाइल व फुटवियर पर जीएसटी की कर दरों में वृद्धि का प्रस्ताव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। देश की 85 % जनसख्या एक हजार रुपये से कम कीमत के कपडे व जूते चप्पल खरीदती है जिस पर वर्तमान में 5% की जीएसटी कर दर है लेकिन 1 जनवरी 2022 से यह कर दर 12% हो जाएगी जिसका सीधा असर देश की 8% जनसंख्या पर पड़ेगा। यह निर्णय बेहद अतार्किक है और देश भर में फैले छोटे छोटे निर्माताओं, कारीगरों व अन्य वर्गों की रोजी रोटी बुरी तरह प्रभावित होगी।जीएसटी का पूरा ढांचा ईज ऑफ़ डूइंग बिजनस के विपरीत हो गया है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। देश की सभी राज्य सरकारों ने अपने लाभ की खातिर जीएसटी के स्वरूप को बेहद विकृत कर रही है। कैट ने कहा कि देश भर के व्यापारी सरकारों की अस्पष्ट नीति से बेहद तंग आ चुके हैं और अब और कोई विकल्प न होने के कारण देश भर में एक विराट संघर्ष अभियान छेड़ने को मजबूर हो गए हैं।
आगामी 11-12 जनवरी को कानपुर में होने वाले राष्ट्रीय व्यापारी सम्मेलन में देश के प्रमुख व्यापारी नेता इसके लिए एक बृहद रणनीति तय करेंगे। जिसके अंतर्गत देश के सभी राज्यों में भारत व्यापार स्वराज्य रथ यात्रा, राज्यस्तरीय विराट व्यापारी सम्मेलन , देश भर के बाज़ारों में विरोध जलूस, मशाल जलूस, धरने, सांसदों व विधायकों का घेराव, प्रदर्शन, राज्यस्तरीय व्यापार बंद व भारत व्यापार बंद की योजना सहित अन्य विरोध कार्यक्रमों को अंतिम रूप देंगे। वही आने वाले विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी हराने की बड़ी योजना पर भी नीति तय करेंगे।