10 दिनों में दो बड़े नेता खोए झारखंड ने, दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बाद अब शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन का निधन

KK Sagar
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झारखंड सरकार में शिक्षा मंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के वरिष्ठ विधायक रामदास सोरेन का शुक्रवार, 15 अगस्त 2025 को निधन हो गया। दिल्ली के एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले 15 दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे और लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे।

कैसे बिगड़ी तबीयत?

2 अगस्त को जमशेदपुर स्थित अपने आवास के बाथरूम में गिरने के बाद रामदास सोरेन को ब्रेन हेमरेज हुआ। हालत गंभीर होने पर उन्हें तत्काल एयरलिफ्ट कर दिल्ली लाया गया और अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां वरिष्ठ डॉक्टरों की टीम उनकी देखरेख कर रही थी, लेकिन लगातार इलाज के बावजूद वे स्वस्थ नहीं हो पाए।

राजनीतिक सफर

जन्म: 1 जनवरी 1963, पूर्वी सिंहभूम जिले के घोड़ाबांदा गांव में, एक साधारण किसान परिवार में।

राजनीति की शुरुआत: घोड़ाबांदा पंचायत के ग्राम प्रधान के रूप में।

पहली जीत: 2009 में घाटशिला से विधायक बने।

2014 में हार: बीजेपी उम्मीदवार लक्ष्मण टुडू से हार का सामना करना पड़ा।

2019 में वापसी: दोबारा घाटशिला से जीत दर्ज की।

2024 का चुनाव: बीजेपी के बाबूलाल सोरेन (पूर्व सीएम चंपाई सोरेन के बेटे) को हराकर तीसरी बार जीत हासिल की।

मंत्री पद: 30 अगस्त 2024 को हेमंत सोरेन मंत्रिमंडल में शामिल होकर स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता मंत्री बने।

10 दिनों में दूसरा बड़ा झटका

झारखंड ने बीते 10 दिनों में अपने दो बड़े नेता खो दिए हैं। पार्टी के संरक्षक दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के बाद अब शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन का जाना राज्य की राजनीति और झारखंड मुक्ति मोर्चा दोनों के लिए गहरी क्षति है।

नेताओं की संवेदनाएं

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया – “ऐसे छोड़कर नहीं जाना था रामदास दा… अंतिम जोहार दादा।”

पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा – “झारखंड के स्कूली शिक्षा व निबंधन मंत्री रामदास सोरेन के निधन का दुखद समाचार मिला। बाबा बैद्यनाथ उनकी आत्मा को शांति और परिवारजनों को दुख सहने की शक्ति दें। ॐ शांति।”

जनता के प्रिय नेता

अपने सरल स्वभाव और जमीन से जुड़े रहने की छवि ने रामदास सोरेन को जनता का चहेता बनाया। वे शिक्षा सुधार और गरीब बच्चों की पढ़ाई को लेकर हमेशा संवेदनशील रहते थे। घाटशिला समेत पूरे पूर्वी झारखंड में उनकी लोकप्रियता काफी थी।

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