विनोबा भावे विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग द्वारा “झारखंड के आर्थिक खनिज संसाधनों की भूविज्ञान एवं अन्वेषण” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ शनिवार को विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में किया गया। यह संगोष्ठी झारखंड राज्य उच्च शिक्षा परिषद द्वारा प्रायोजित है, जिसमें देश के शीर्षस्थ शैक्षणिक संस्थानों से विद्वान एवं विशेषज्ञ शामिल हुए। संगोष्ठी का उद्देश्य राज्य के खनिज संसाधनों की वैज्ञानिक समझ को विकसित करना तथा अनुसंधान व अन्वेषण की संभावनाओं पर संवाद स्थापित करना था।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर चंद्र भूषण शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने भूविज्ञान विभाग को इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए बधाई देते हुए कहा कि वर्तमान समय में उच्च शिक्षा संस्थानों को विषयगत विशेषज्ञता के साथ तकनीकी सहयोग की दिशा में भी अग्रसर होने की आवश्यकता है। उन्होंने शिक्षकों की कमी को उच्च शिक्षा की एक बड़ी चुनौती बताया और इसके समाधान के लिए ऑनलाइन शिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न कॉलेजों के बीच शैक्षणिक आदान-प्रदान की संभावना पर बल दिया। उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि विश्वविद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों के लिए शीघ्र ही ऑनलाइन कक्षाओं की व्यवस्था की जाएगी।
इस कार्यक्रम में वित्त सलाहकार अखिलेश शर्मा, कुलसचिव डॉ. सादिक रज्जाक और प्रॉक्टर डॉ. मिथिलेश कुमार सिंह भी मंच पर उपस्थित रहे। डॉ. मिथिलेश ने अपने संबोधन में रियो डी जनेरियो सम्मेलन का संदर्भ देते हुए कहा कि वर्तमान समय में पर्यावरणीय दायित्वों को लेकर अपेक्षाएं अधिकतर विकासशील देशों से की जाती हैं, जबकि विकसित देश इन दायित्वों से बचते हैं, जो वैश्विक असंतुलन को जन्म देता है।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में विस्तारित शोध-सार संकलन पुस्तिका (Extended Abstract Volume) का विमोचन सभी अतिथियों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। संगोष्ठी में मेजबान विभाग के स्नातकोत्तर छात्रों के साथ-साथ संत कोलंबस महाविद्यालय, रांची विश्वविद्यालय, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, आईआईटी आईएसएम धनबाद, आईआईटी खड़गपुर सहित विभिन्न संस्थानों से 100 से अधिक विद्यार्थियों ने पंजीकरण कर भागीदारी निभाई।
संगोष्ठी के प्रथम दिन दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता भूविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस. के. सिन्हा ने की, जबकि द्वितीय सत्र का संचालन डॉ. हर्षवर्धन ने किया। दोनों सत्रों में देशभर के ख्यातिप्राप्त भूवैज्ञानिकों ने झारखंड की भूगर्भीय संरचना, खनिज संसाधनों और भविष्य की संभावनाओं पर अपने शोध और व्याख्यान प्रस्तुत किए। खान एवं भूविज्ञान निदेशक श्री मनोज कुमार ने कोडरमा और गिरिडीह जिलों में लिथियम युक्त मिका-पेग्माटाइट जमाओं की जानकारी दी, वहीं आईएसएम धनबाद के प्रो. एस. सारंगी ने बोकारो कोलफील्ड में लैम्फ्रोफायर अंतःप्रवेशों में लाइट रेयर अर्थ एलिमेंट्स की उपस्थिति पर प्रकाश डाला। खान विभाग के अपर निदेशक श्री कुमार अमिताभ ने राज्य की खनिज अर्थव्यवस्था की वर्तमान दशा और दिशा पर चर्चा की, जबकि सीएसआईआर-सीआईएमएफआर धनबाद के वैज्ञानिक श्री बोधिसत्व हाजरा ने हाइड्रोकार्बन भूविज्ञान में रॉक-इवैल तकनीक के उपयोग की विस्तृत जानकारी साझा की।
इस अवसर पर दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय की डॉ. प्रीति कुमारी ने सिमडेगा के पास छोटानागपुर ग्रेनाइटिक निष्सिक कॉम्प्लेक्स में पाए जाने वाले लैम्फ्रोफायर एवं एम्फीबोलाइट शैलों पर आधारित अपना शोध प्रस्तुत किया। बीरबल साहनी जीवाश्म विज्ञान संस्थान, लखनऊ की डॉ. दिव्या कुमारी ने दक्षिण करनपुरा बेसिन में पर्मियन कोयला शृंखलाओं की स्रोत शैल विशेषताओं तथा अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन स्रोतों की संभावनाओं पर गहन व्याख्यान दिया। पटना विश्वविद्यालय के डॉ. दिनेश कुमार ने गढ़वा जिले के भवनाथपुर क्षेत्र में सेमरी समूह की चूना पत्थर शैलों की भू-रासायनिक विशेषताओं पर आधारित अपना शोध प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी के समापन अवसर पर भूविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. एच. एन. सिन्हा ने सभी सत्रों के मुख्य बिंदुओं का संक्षिप्त सार प्रस्तुत किया। मंच संचालन अंचित सृजन एवं तिलोतमा भारती ने किया। साथ ही प्रतिभानंद सिंह के नेतृत्व में एक सांस्कृतिक प्रस्तुति भी आयोजित की गई, जिसने कार्यक्रम को सौंदर्यपूर्ण समापन प्रदान किया।
इस सफल आयोजन के पीछे विभागीय शिक्षकों एवं शोधार्थियों की सक्रिय भूमिका रही, जिनमें डॉ. भैया अनुपम, डॉ. हर्षवर्धन कुमार, प्रतिभानंद सिंह, अनिल कुमार, ऋतुजया केर्केट्टा, शिल्पी तिर्की, शीला एवं अन्य सहयोगी प्रमुख रूप से शामिल रहे।