डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया:सनातन धर्म में अक्षय नवमी का पर्व अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है। इसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय नवमी के शुभ अवसर पर श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं। इस दिन साधक व्रत रखते हैं और आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं। इस पर्व का महत्व अक्षय तृतीया के समान माना गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह शुभ दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है। इस साल यह पर्व 10 नवंबर को मनाया जाएगा।
अक्षय नवमी का धार्मिक महत्व
अक्षय नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने अपने कर्तव्यों को पूरा करने हेतु वृंदावन से मथुरा की यात्रा की थी और इसी दिन सत्य युग की शुरुआत हुई मानी जाती है। तभी से यह पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की आराधना से अक्षय फल की प्राप्ति होती है और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पूजा विधि
- स्नान करें: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- आंवले के पेड़ की पूजा: आंवले के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करें।
- कच्चा दूध चढ़ाएं: पेड़ की जड़ों में कच्चा दूध चढ़ाएं।
- दीप प्रज्वलन: पेड़ के सामने घी का दीपक जलाएं।
- तिलक करें: हल्दी और कुमकुम से तिलक करें।
- लाल धागा बांधें: पेड़ के चारों ओर सात बार लाल धागा बांधें।
- वस्त्र अर्पण: पेड़ पर पीला वस्त्र अर्पित करें।
- भगवान विष्णु का ध्यान: श्री हरि का ध्यान करके उनकी विधिपूर्वक पूजा करें।
- अक्षय नवमी कथा का पाठ: अक्षय नवमी की कथा पढ़ें।
- परिक्रमा करें: पेड़ के चारों ओर सात बार परिक्रमा करें।
- दान-पुण्य करें: इस तिथि पर किसी गरीब ब्राह्मण को भोजन कराएं और वस्त्र का दान करें।
दान-पुण्य का महत्व
अक्षय नवमी पर दान-पुण्य का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय फल प्रदान करता है। इस पावन पर्व पर भक्तगण दान देकर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार, अक्षय नवमी का पर्व आस्था, भक्ति और दान-पुण्य का संदेश देता है, जो साधकों के जीवन में समृद्धि और शांति लाता है।
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