नवरात्रि के चौथे दिन होती है मां कुष्मांडा की पूजा, जानिए कथा, पूजा विधि और महत्व

KK Sagar
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नवरात्रि का चौथा दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की आराधना के लिए समर्पित होता है। देवी कुष्मांडा को सृष्टि की रचनाकार माना जाता है, जिनकी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। इस दिन भक्त उनकी विशेष पूजा-अर्चना कर सुख, समृद्धि और शक्ति की प्राप्ति करते हैं।


मां कुष्मांडा का स्वरूप और विशेषता

  1. अष्टभुजा देवी: मां कुष्मांडा के आठ हाथ होते हैं, जिनमें वे कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला धारण करती हैं।
  2. वाहन: उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
  3. नाम की उत्पत्ति: संस्कृत में “कूष्म” का अर्थ है कुम्हड़ा (कद्दू) और “अंड” का अर्थ है ब्रह्मांड, इसीलिए उन्हें कुष्मांडा कहा जाता है।
  4. सृष्टि की रचनाकार: मान्यता है कि मां कुष्मांडा ने अपनी मुस्कान मात्र से ब्रह्मांड की रचना की थी, जब चारों ओर अंधकार था।

मां कुष्मांडा की पूजा विधि

(1) स्नान एवं संकल्प:

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ लाल या पीले वस्त्र पहनें।
  • मां कुष्मांडा की पूजा करने का संकल्प लें।

(2) पूजन स्थल की तैयारी:

  • पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
  • मां कुष्मांडा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर देवी को विराजमान करें।

(3) पूजन सामग्री अर्पण करें:

  • मां कुष्मांडा को लाल पुष्प, चंदन, कुमकुम, अक्षत (चावल), धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • उन्हें मालपुआ का भोग विशेष रूप से लगाएं, क्योंकि यह उन्हें प्रिय माना जाता है।

(4) मां कुष्मांडा के मंत्र का जाप करें:

“या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”

  • इस मंत्र का 108 बार जप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

(5) मां कुष्मांडा की आरती करें:

  • घी का दीपक जलाकर मां की आरती गाएं।
  • प्रसाद बांटें और घर के सभी सदस्यों को इसका आशीर्वाद दें।

मां कुष्मांडा व्रत कथा

प्राचीन कथा के अनुसार, जब इस सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था और चारों ओर घनघोर अंधकार था, तब मां कुष्मांडा ने अपनी हल्की मुस्कान से इस ब्रह्मांड की रचना की।

कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन थे और कुछ भी नहीं था, तब देवी कुष्मांडा प्रकट हुईं। उन्होंने अपने तेज से पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित कर दिया और सृष्टि का संचालन शुरू हुआ।

इसलिए मां कुष्मांडा को “आदिशक्ति” और “सृष्टि की जननी” कहा जाता है। उनकी आराधना करने से व्यक्ति को नवग्रह दोषों से मुक्ति, लंबी आयु, निरोगी शरीर और सफलता प्राप्त होती है।


मां कुष्मांडा की पूजा का महत्व

  1. नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: मां कुष्मांडा की पूजा करने से नकारात्मक शक्तियां और बुरी आत्माएं दूर होती हैं
  2. आरोग्य और दीर्घायु: देवी की कृपा से रोगों से मुक्ति और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
  3. मानसिक शांति: उनकी उपासना करने से मन को शांति और आत्मबल मिलता है।
  4. सौभाग्य और ऐश्वर्य: देवी की पूजा से धन, वैभव और समृद्धि का वरदान मिलता है।
  5. सूर्य ग्रह से जुड़े दोषों का निवारण: मां कुष्मांडा की उपासना सूर्य ग्रह से जुड़े दोषों को शांत करने में सहायक होती है।

इस दिन का शुभ रंग और भोग

  • शुभ रंग: इस दिन नारंगी या पीला रंग पहनना शुभ माना जाता है।
  • भोग: मां कुष्मांडा को मालपुआ और गुड़ से बनी मिठाई अर्पित करने से वे प्रसन्न होती हैं।

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