मिरर मीडिया : बिहार में जातीय जनगणना को लेकर हो रही सियासत के बीच इसे रद्द करने वाली याचिका अब पटना उच्च न्यायालय में दायर की गई है। पटना उच्च न्यायालय में जातीय जनगणना के खिलाफ एक साथ 3 याचिकाएं दायर की गई है। इन याचिकाओं में जातिगत आधारित जनगणना को रद्द करने की मांग की गई है। मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी।
याचिकाओं में कहा गया है कि जाति आधारित जनगणना से समाज में भेदभाव उत्पन्न हो सकता है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार एवं रितु राज ने कोर्ट में कहा कि राज्य सरकार के पास जाति आधारित सर्वे और आर्थिक सर्वे करने की कोई शक्ति नहीं है। इसके लिए केवल केंद्र सरकार सक्षम है। याचिका में यह दलील दी गई है कि जाति आधारित जनगणना बिहार के लिए सही नहीं है, इसीलिए इसे रद्द करने की जरूरत है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि जब केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना नहीं करा रही है, तो बिहार सरकार आकस्मिक निधि के फंड से 500 करोड़ रुपए खर्च करके बिहार में जाति आधारित जनगणना क्यों करा रही है?
इसमें सभी से उनकी जाति पूछी जाएगी और जाति के आधार पर कोड लिखा जाएगा। मतलब अब बिहार में सभी जाति के लोग जाति के नाम से नहीं बल्कि नंबर से पहचाने जाएंगे। सरकार की तरफ से जो लिस्ट जारी की गई है उसमें 214 जातियां है जबकि एक अन्य के लिए नंबर है जो ट्रांसजेंडर को दर्शाएगा। हालांकि 215 नंबर पर वह भी जाति आएगी जो इस 214 की सूची में शामिल नहीं है, उसके लिए पर्याप्त दस्तावेज दिखाने होंगे।
बता दें कि बिहार में जातीय जनगणना का दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू होने जा रहा है। इस जातिगत जनगणना का पहला फेज समाप्त हो चुका है और अब इसके दूसरे फेज की तैयारी की जा रही है। जातिगत जनगणना के लिए सरकार की तरफ से 500 करोड़ रुपए की रकम रखी गई है।