बिहार की जनता से मिली की अब तक मिले जनादेश ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का रास्ता करीब-करीब साफ कर दिया है। इस तरह से एनडीए के नारे 25 से 30, फिर से नीतीश पर मुहर लग गई। तमाम एग्जिट पोल ने साफ इशारा किया था कि एनडीए को महिलाओं, ओबीसी और ईबीसी वर्ग का बंपर समर्थन मिला है। रुझान भी इस बात पर मुहर लगा रहे हैं। उन कारणों को जो एनडीए की जीत के बड़े फैक्टर बने।

महिलाओं ने रिकॉर्ड वोटिंग की
इस बार बिहार में कुल 67.13 फीसदी का रिकॉर्ड मतदान हुआ। लेकिन महिलाओं ने इससे भी आगे बढ़कर 71.78 फीसदी मतदान किया, जबकि पुरुषों का मतदान फीसदी 62.98 % रहा। कई जिलों में महिलाओं ने पुरुषों से 10 से 15 फीसदी ज्यादा वोटिंग की। महिलाएं पिछले 15 सालों से लगातार ज्यादा संख्या में वोट कर रही थीं, लेकिन 2025 में उनकी भारी भागीदारी ने सबको चौंका दिया।
जीविका दीदियों ने बिहार चुनाव रिजल्ट तय किया?
माना जा रहा है कि जीविका दीदियों ने एनडीए को आगे रखने में अहम भूमिका निभाई है। नीतीश कुमार ने स्वंय सहायता समूह के तौर पर जीविका का गठन किय था जिसकी शाखाएं आज गांव-गांव तक हैं। एक करोड़ से ज्यादा महिलाएं इनसे जुड़ी हुई हैं। इन्हें बेहद कम ब्याज दर पर पैसा मिलता है। फिर गांव में कमेटी बनाकर जरूरतमंद महिलाओं को दिया जाता है। ये पहले सी सफल मॉडल था। अब दस हजार के टॉप अप ने इसे और प्रोत्साहित किया है। अगर इस सीड मनी से किसी महिला ने कोई रोजगार खड़ा किया तो उसे दो लाख रुपए तक की सहायता और दी जाएगी।
महिलाओं के लिए अन्य योजनाएं
सरकार महिलाओं की आमदनी बढ़ाने के लिए उन्हें लखपति दीदी, ड्रोन दीदी और बैंक सखी जैसी भूमिकाओं में भी प्रशिक्षित कर रही है। पिछले कुछ सालों में जीविका से जुड़ी महिलाओं ने ग्रामीण एंटरप्रेन्योरशिप की नई तस्वीर पेश की है। उनसे कई लघु उद्यम और प्रोड्यूसर कंपनियां खड़ी हुई हैं। फिलहाल, पूरे बिहार से करीब 20 लाख महिलाएं इस कार्यक्रम से जुड़ी हैं, जो आगे चलकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकती हैं।
2006 की ये योजना भी बनी भविष्य की गेमचेंजर
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2006 में मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत लड़कियों को साइकिल और स्कूल की पोशाक दी जाती है। इस योजना ने बिहार की उन बेटियों को काफी मजबूत किया, जो स्कूल दूर होने की वजह से पढ़ाई छोड़ देती थीं। इसी के साथ नीतीश सरकार ने बच्चों के लिए किताबें और पोशाक के लिए पैसे देने शुरू किए।

