बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को बंपर जीत मिल रही है। अभी तक के आए नतीजों में एनडीए को 200-201 सीटें मिल रही हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाली मोकामा की विधानसभा सीट पर एक बार फिर से अनंत सिंह का परचम लहराया है।

29,710 मतों से आरजेडी प्रत्याशी को हराया
बाहुबली उम्मीदवार अनंत कुमार सिंह चुनाव जीत गए हैं। उन्हें कुल 81692 वोट मिले। उन्होंने नजदीकी प्रतिद्वंद्वी आरजेडी की प्रत्याशी वीणा देवी को 29710 मतों के अंतर से हरा दिया। उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी आरजेडी की वीना देवी को 51,982 वोट मिले। जन सुराज पार्टी के प्रियदर्शी पीयूष को 11,231 वोट मिले।
मतदान से ठीक पहले हुए थे गिरफ़्तार
मोकामा सीट जेडीयू के उम्मीदवार अनंत सिंह को मतदान से ठीक पहले गिरफ़्तार किए जाने की वजह से सीट चर्चा में है। मोकामा से जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या के मामले में अनंत सिंह मुख्य आरोपी हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान ही दुलारचंद यादव की हत्या
मोकामा से पहले अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी विधायक थीं। इस बार खुद अनंत सिंह ने चुनाव लड़ा। चुनाव प्रचार के दौरान ही दुलारचंद यादव की हत्या कर दी गई थी। आरोप है कि हत्या में अनंत सिंह स्वयं शामिल थे। इस हत्याकांड को लेकर अनंत सिंह और जेडीयू सहित एनडीए पर विपक्षी दलों ने जमकर हमले किए थे। अनंत सिंह को गिरफ्तार भी किया गया था।
चुनाव में राजनीति के केंद्र में रहे अनंत सिंह
इस बार के चुनाव में अनंत सिंह राजनीति के केंद्र में रहे। चुनाव ऐलान के बाद जब नामांकन का दौर शुरू हुआ था तब भी अनंत सिंह सबसे आगे थे. जेडीयू की ओर से उन्होंने सबसे पहले नामांकन किया था और अब जीत भी पहले ही मिली है।
मोकामा में अनंत कुमार सिंह का दबदबा
मोकामा विधानसभा क्षेत्र में 58 साल के अनंत सिंह और उनके परिवार का पिछले 35 साल से दबदबा है। सन 2000 के बिहार के विधानसभा चुनाव में सूरजभान सिंह ने अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह को मोकामा सीट पर हराया था। सूरजभान सिंह की पहले दिलीप सिंह से दोस्ती थी। लेकिन सन 2000 के बाद उनके संबंधों में बदलाव आ गया। अनंत कुमार सिंह के भाई दिलीप सिंह राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री भी रहे थे। दिलीप सिंह साल मोकामा सीट पर सन 1990 और 1995 में जीते थे। इसके बाद सन 2005 से अनंत सिंह इस क्षेत्र से जीत रहे हैं। अनंत सिंह जेडीयू से पहले आरजेडी में रहे, निर्दलीय भी चुनाव लड़ा लेकिन वे कभी हारे नहीं।

