टाटा जू में यह क्या चल रहा है? छह दिन, दस ब्लैकबक और एक खामोश कातिल

Manju
By Manju
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डिजिटल डेस्क/जमशेदपुर : टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क, जो शहर की शान माना जाता है, इन दिनों किसी हॉरर फिल्म का सेट लग रहा है। 1 दिसंबर से 6 दिसंबर तक महज छह दिनों में दस खूबसूरत ब्लैकबक एक-एक कर गिरते चले गए। सुबह-सुबह रखवाले बाड़े में पहुंचते तो कोई न कोई कृष्णमृग सांसें थाम चुका होता। कुल अठारह थे, अब सिर्फ आठ बचे हैं। बाकी दस चले गए, बिना चीखे-चिल्लाए, बिना किसी को मौका दिए कि उन्हें बचाया जा सके।

जांच में जो नाम सामने आया वो सुनकर रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ जाती है – पाश्चुरेला मल्टोसिडा। पशु चिकित्सकों की भाषा में इसे हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया कहते हैं, लेकिन झारखंड के गांवों में सदियों से इसे सिर्फ एक नाम से जाना जाता है-गलघोंटू। नाम ही बता देता है कि यह क्या करता है। गर्दन के नीचे भयानक सूजन, सांस की नली बंद, और चौबीस घंटे में मौत। इतनी तेजी कि एंटीबायोटिक देने का वक्त तक न मिले।

सवाल यह है कि टाटा जू जैसे हाई-टेक चिड़ियाघर में यह सब कैसे हो गया? जहां हर जानवर की डाइट प्लान होती है, जहां वेटरनरी स्टाफ 24 घंटे मौजूद रहता है, वहां एक मामूली-सा दिखने वाला बैक्टीरिया पूरे झुंड को निगल गया। कुछ लोग कह रहे हैं कि बारिश के बाद दूषित चारा आया होगा। कुछ का मानना है कि कहीं न कहीं बायो-सिक्योरिटी में चूक हुई। पर सच जो भी हो, दस जिंदगहें खाली हो चुकी हैं और वो खालीपन चीख-चीख कर पूछ रहा है–टाटा जू में यह क्या चल रहा है?

अब जाकर हरकत में आया प्रशासन। बचे हुए आठ हिरणों को एंटीबायोटिक का भारी डोज, पूरे बाड़े में ब्लीचिंग पाउडर की बारिश, रोज सुबह-शाम तापमान चेक करना। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को रिपोर्ट भेज दी गई है। रांची का बिरसा जू भी सन्नाटे में आ गया है–वहां भी छिड़काव शुरू हो गया है।

पर सवाल फिर वही है। जब तक दस जानें नहीं गई, नींद क्यों नहीं टूटी? क्या वाकई अब सब कंट्रोल में है या यह खामोशी किसी और तूफान से पहले की खामोशी है?

आज टाटा जू के उस बाड़े को देखकर मन रोता है। जहां कभी अठारह काले हिरण दौड़ते-कूदते दिखते थे, वहां अब सिर्फ आठ डरे-सहमे हिरण एक-दूसरे से सटकर खड़े हैं। जैसे पूछ रहे हों, अब हमारा नंबर कब है?

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