महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को निरस्त करने और उसकी जगह ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025’ लाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ राजनीतिक हलकों में नाराजगी देखी जा रही है। राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने मनरेगा को खत्म करने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने इस मुद्दे पर संसदों को एक खुला पत्र लिखा है।

मनोज झा ने अपने पत्र की शुरुआत गांधीजी के ‘तावीज’ की याद दिलाते हुए की। उन्होंने लिखा कि हममें से कई लोगों को अपनी स्कूल की किताबों का पहला पन्ना याद होगा, जिस पर गांधीजी का ताबीज छपा था। उन्होंने हमसे कहा था कि हम उस सबसे गरीब और कमजोर इंसान का चेहरा याद रखें जिसे हमने देखा है और खुद से पूछें कि जो काम हम करने वाले हैं, क्या वह उस इंसान के लिए फायदेमंद होगा? क्या इससे उसे अपनी जिंदगी पर दोबारा कंट्रोल मिल पाएगा? उनका मानना था कि अगर हमारा काम इस कसौटी पर खरा उतरता है, तो सारे शक दूर हो जाएंगे। वह ताबीज पब्लिक लाइफ के हर फैसले में गाइड करने के लिए था। मैं आज आपको उसी सिद्धांत को ध्यान में रखकर लिख रहा हूं।
गरीब और मजदूर वर्ग के हित की अपील
मनोज झा ने लिखा है, 15 दिसंबर 2025 को केंद्र सरकार ने मनरेगा को खत्म करने और उसकी जगह विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल 2025 लाने का प्रस्ताव संसद में रखा। उन्होंने कहा कि लोकसभा में इस पर देर रात तक चर्चा जरूर हुई। लेकिन राज्यसभा में इस बिल का विरोध किया जाना बेहद जरूरी है। उन्होंने साफ कहा कि यह अपील किसी राजनीतिक दल के हित में नहीं है। यह देश के गरीब और मजदूर वर्ग के हित में है।
काम पाने का अधिकार लोकतंत्र का अहम हिस्सा-मनोज झा
आरजेडी सांसद ने याद दिलाया कि मनरेगा कानून 2005 में लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की सहमति से बनाया गया था। उस समय संसद ने यह माना था कि सम्मान के साथ काम पाने का अधिकार लोकतंत्र का अहम हिस्सा है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 41 में भी राज्य को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह बेरोजगारी की स्थिति में लोगों को काम और सहायता उपलब्ध कराए। मनरेगा ने इस संवैधानिक भावना को कानूनी गारंटी में बदला था, लेकिन नया बिल इस गारंटी को खत्म कर देता है।
सरकार के दावे को बताया गुमराह करने वाला
मनोज झा ने मनरेगा को खत्म कर उसकी जगह विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक 2025 लाने को लेकर सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, सरकार का दावा है कि नया फ्रेमवर्क 100 दिनों के बजाय 125 दिनों का काम देगा। यह दावा गुमराह करने वाला है। मनरेगा, जो डिमांड पर आधारित था, उसके उलट नया बिल रोजगार को केंद्र सरकार के फंड और प्रशासनिक फैसलों पर निर्भर बनाता है। इसका कवरेज अब यूनिवर्सल नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार द्वारा नोटिफाइड इलाकों तक ही सीमित है। ऐसे समय में जब मनरेगा मजदूरों को भी अपर्याप्त फंडिंग के कारण सालाना सिर्फ 50-55 दिन का काम मिलता था, बिना पक्के संसाधनों के अतिरिक्त दिनों का वादा भरोसेमंद नहीं है। इसके अलावा, प्रस्तावित लागत-बंटवारे की व्यवस्था, जिसमें राज्यों को 40 प्रतिशत खर्च उठाना होगा, कई राज्यों पर एक असहनीय बोझ डालेगी, जिससे लोगों को बाहर किया जाएगा और काम कम होगा।
मनरेगा का बचाव करने की अपील
आरजेडी सांसद ने आगे कहा कि मैं आपसे अपील करता हूं कि लोकतांत्रिक सहमति और नैतिक स्पष्टता से बने इस कानून का बचाव करें। आइए, हम इस सिद्धांत पर कायम रहें कि हर हाथ को काम मिलना चाहिए और हर मजदूर को सम्मान मिलना चाहिए। हमारे देश के सबसे गरीब नागरिक हमारे फैसलों को देख रहे हैं।

