ओशो अनुज स्वामी शैलेंद्र सरस्वती एवं मां प्रिया का बुधवार को रांची एयरपोर्ट पर भव्य आगमन हुआ। सैकड़ों की संख्या में मौजूद भक्तों और साधकों ने बुके, पुष्पमालाओं के साथ उनका आत्मीय स्वागत किया। एयरपोर्ट का माहौल पूरी तरह भक्ति और उत्सव के वातावरण में परिवर्तित हो गया।

इसके बाद स्वागत काफिला रामगढ़ के शहनाई बैंक्वेट हॉल, कैथा मंदिर मौसी बड़ी के पास पहुंचा, जहां दूर-दूर से आए सैकड़ों साधकों ने पुष्प वर्षा कर उनका अभिनंदन किया। कार्यक्रम का शुभारंभ शाम 5:30 बजे हुआ। मंच पर स्वामी शैलेंद्र सरस्वती, मां प्रिया, आचार्य प्रभाकर, डॉ. सीमा रश्मि और स्वामी दिगंबर विराजमान थे।
स्वागत क्रम में मां दीपा ने स्वामी शैलेंद्र सरस्वती को पुष्पमाला अर्पित की, मनोज जी ने मां प्रिया को बुके प्रदान किया, श्री श्याम जी ने आचार्य प्रभाकर का स्वागत किया, कमल बगड़िया ने डॉ. सीमा रश्मि को माल्यार्पण किया तथा अजय जी ने स्वामी दिगंबर को बुके, माला और दुपट्टा ओढ़ाकर सम्मानित किया। इसके बाद बच्चों द्वारा स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया।
मां दीपा और स्वामी मनोज जी ने स्वागत संबोधन दिया, जिसके पश्चात मंच संचालन की जिम्मेदारी कमल बगड़िया को सौंपी गई। मां प्रिया और स्वामी शैलेंद्र सरस्वती द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ हुआ। तीनों आचार्यों के संबोधन के बाद मां प्रिया ने साधकों को ध्यान और प्रेम का महत्व समझाया।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण परम गुरु ओशो के अनुज स्वामी शैलेंद्र सरस्वती का उद्बोधन रहा, जिसका साधक बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उन्होंने बड़े सहज और मार्मिक शब्दों में ध्यान की गहराइयों को समझाया। स्वामी शैलेंद्र ने कहा कि ध्यान कोई कठिन साधना नहीं है, बल्कि जब मन और तन से हम कुछ नहीं करते, तभी ध्यान में प्रवेश होता है। ओंकार के माध्यम से काम, क्रोध और मोह से मुक्ति संभव है।
उन्होंने बताया कि ओशो फ्रेगरेंस में साधना को अत्यंत सरल और आनंदमय तरीके से समझाया जाता है। साधना के बाद साधक आनंद के सागर में डूबने लगता है, जैसे एक बूंद सागर में मिलकर स्वयं सागर बन जाती है। तीन दिनों के इस ध्यान-उत्सव से मन की क्रियाएं सकारात्मक रूप से बदलती हैं और जीवन में नई ऊर्जा, नई दिनचर्या और नई शुरुआत होती है।
स्वामी शैलेंद्र ने कहा कि परमात्मा को पाने के लिए कठिन नियमों की आवश्यकता नहीं है। उत्सव, संगीत, हंसी-नृत्य के माध्यम से भी ईश्वर की अनुभूति संभव है। “उत्सव हमारा धर्म, आनंद हमारा गोत्र” की भावना को अपनाते हुए सहज ध्यान की शिक्षा दी जाती है।
उन्होंने ओशो के जीवन और दर्शन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि ओशो ने अपने प्रवचनों के माध्यम से साढ़े छह सौ से अधिक पुस्तकों को जन्म दिया। ऐसे महान संत युगों में कभी-कभी ही अवतरित होते हैं। ओशो ने काम की शक्ति को राम की शक्ति से जोड़ा और कहा कि काम से मुक्त होकर ही राम-तत्व की प्राप्ति संभव है।
कार्यक्रम के अंत में संगीत, उत्सव और आनंद का माहौल रहा। धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात साधकों के बीच प्रसाद और भोजन का वितरण किया गया।

