हुल क्रांतिकारियों का बलिदान नही भूलेगा हिंदुस्तान:- अ०भा०वी०प
1855 में संथाल परगना से जगी थी आजादी की अलख
मिरर मीडिया : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद रांची महानगर द्वारा संथाल विद्रोह हुल दिवस के अवसर पर राँची स्थित सिद्धू कान्हो पार्क में उनके प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनको याद किया गया।
वहीं इस दौरान राष्ट्रीय महामंत्री याज्ञवल्क्य शुक्ल ने बताया कि आज का दिन झारखंड के लिए गौरव का दिन है। क्योंकि अंग्रेज़ो के खिलाफ आज़ादी की बिगुल 1855 में सबसे पहले झारखंड के वीर सपूत सिद्धू कान्हू और चांद भैरव ने जगाई थी।
जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजस्व बढ़ाने के मकसद से जमींदार की फौज तैयार की जो पहाड़िया, संथाल और अन्य निवासियों से जबरन लगान वसूलने लगे। इससे लोगों में असंतोष की भावना मजबूत होती गई। इस जन आंदोलन के नायक भगनाडीह निवासी भूमिहीन किंतु ग्राम प्रधान चुन्नी मांडी के चार पुत्र सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव थे।
आजादी की पहली लड़ाई सन 1857 में मानी जाती है लेकिन झारखंड के जनजातीय समाज ने 1855 में ही विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया था। 30 जून, 1855 को 400 गांवों के करीब 50 हजार आदिवासी सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में मौजूदा साहेबगंज जिले के भगनाडीह गांव पहुंचे और आंदोलन की शुरुआत हुई। इसी सभा में यह घोषणा कर दी गई कि वे अब मालगुजारी नहीं देंगे। यह विद्रोह भले ही ‘संथाल हूल’ हो, परंतु संथाल परगना के समस्त ग़रीबों और शोषितों द्वारा अंग्रेज़ों एवं उसके कर्मचारियों के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन था।
बहराइच में अंग्रेजों और आंदोलनकारियों की लड़ाई में चांद और भैरव शहीद हो गए साथ ही सिद्धू और कान्हू के करीबी साथियों को पैसे का लालच देकर दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया और फिर 26 जुलाई को दोनों भाइयों को भगनाडीह गांव में खुलेआम एक पेड़ पर टांगकर फांसी की सजा दे दी गई। इस विद्रोह में सैकड़ो क्रांतिकारियों ने अपनी जान की प्रवाह न करते हुए आजादी की लडाई लड़ी।
मौके पर राष्ट्रीय महामंत्री याज्ञवल्क्य शुक्ल, प्रान्त सह कोषाध्यक्ष शुभम प्रोहित, प्रेम प्रतीक,अटल पांडेय,अवधेश ठाकुर, मुन्ना यादव, खुशबू हेमरोम, हर्ष राज, ऋतुराज सिंह, विद्यानंद राय, सिद्धान्त, साक्षी, शुभम, कुणाल,ऋतु,सचिन एवम अन्य कार्यकर्ता उपस्थित रहे।