‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद सर्वदलीय प्रतिनिधि दल पर विवाद, टीएमसी ने यूसुफ पठान का नाम लिया वापस

Manju
By Manju
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मिरर डेस्क, कोलकाता/नई दिल्ली : केंद्र सरकार की ओर से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को वैश्विक मंच पर बेनकाब करने के लिए विभिन्न देशों में भेजे जाने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधि दल को लेकर विवाद शुरू हो गया है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अपने लोकसभा सांसद और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान का नाम इस प्रतिनिधिमंडल से वापस ले लिया है। इससे पहले कांग्रेस ने भी इस दल में अपने सांसद शशि थरूर के नाम को लेकर आपत्ति जताई थी। इस घटनाक्रम ने केंद्र सरकार की कूटनीतिक पहल को शुरू होने से पहले ही विवादों में ला दिया है।

टीएमसी का स्टैंड:

तृणमूल कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि वह राष्ट्रहित के साथ है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का जिम्मा केंद्र सरकार का है। टीएमसी के राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा, हमारा मानना है कि राष्ट्र सबसे ऊपर है। हमने केंद्र सरकार को आतंकवाद से निपटने और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए हर आवश्यक कदम का समर्थन करने का वचन दिया है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कूटनीति का काम केंद्र सरकार को ही करना चाहिए। प्रतिनिधिमंडल में कौन शामिल होगा, यह हमारी पार्टी तय करेगी, न कि केंद्र।’

टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और सांसद अभिषेक बनर्जी ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, ‘हमें किसी भी सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के विदेश जाने से कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन हमारी पार्टी का कौन सा सदस्य इसमें शामिल होगा, यह हमारा फैसला है। केंद्र सरकार एकतरफा तरीके से यह तय नहीं कर सकती।’

यूसुफ पठान का नाम वापसी का कारण:
केंद्र सरकार ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों की घोषणा की थी, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के सदस्य देशों सहित अन्य प्रमुख देशों का दौरा कर पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करेंगे। इनमें यूसुफ पठान को टीएमसी के प्रतिनिधि के रूप में शामिल किया गया था। हालांकि, टीएमसी ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यूसुफ पठान का नाम बिना उनकी सहमति के जोड़ा गया। पार्टी ने तत्काल प्रभाव से उनका नाम वापस ले लिया। सूत्रों के मुताबिक, टीएमसी सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि हम केंद्र सरकार के साथ हैं, लेकिन प्रतिनिधिमंडल में हमारे सांसद का नाम हमारी सहमति के बिना नहीं जोड़ा जा सकता। यह हमारी पार्टी का विशेषाधिकार है।’

कांग्रेस में भी शशि थरूर को लेकर विवाद:
टीएमसी से पहले कांग्रेस ने भी इस प्रतिनिधिमंडल में अपने सांसद शशि थरूर के नाम को लेकर असंतोष जताया था। संसदीय कार्य मंत्रालय ने सात सांसदों की सूची जारी की थी, जिसमें शशि थरूर को एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए चुना गया। हालांकि, कांग्रेस ने दावा किया कि उन्होंने चार अन्य सांसदों-आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार के नाम सुझाए थे, लेकिन शशि थरूर का नाम उनकी सूची में शामिल नहीं था।

कांग्रेस की इस आपत्ति के बावजूद, शशि थरूर ने केंद्र सरकार के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए कहा, ‘मैं राष्ट्रीय हित में भारत का पक्ष रखने के लिए तैयार हूं। मेरी सेवाओं की जरूरत होने पर मैं पीछे नहीं हटूंगा।’ इस बयान ने कांग्रेस के अंदर भी कुछ असहजता पैदा की, क्योंकि पार्टी नेतृत्व ने इस मुद्दे पर एकजुटता की कमी दिखाई।

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का उद्देश्य
केंद्र सरकार ने इन प्रतिनिधिमंडलों का गठन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद को वैश्विक मंच पर उजागर करने के लिए किया है। इनका नेतृत्व बीजेपी के रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, जेडीयू के संजय झा, डीएमके की कनिमोझी, एनसीपी (एसपी) की सुप्रिया सुले, शिवसेना (शिंदे गुट) के श्रीकांत शिंदे और कांग्रेस के शशि थरूर करेंगे।

विपक्षी दलों में असंतोष
टीएमसी और कांग्रेस के रुख ने इस कूटनीतिक पहल को लेकर विपक्षी दलों में असंतोष को उजागर किया है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह केंद्र सरकार की ओर से विपक्ष को शामिल करने की कोशिश थी, लेकिन सहमति बनाने में कमी रही। बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा, ‘शशि थरूर की विदेश नीति में विशेषज्ञता और संयुक्त राष्ट्र में उनके अनुभव को कोई नकार नहीं सकता। फिर कांग्रेस ने उनका नाम क्यों नहीं सुझाया?’

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
इस मुद्दे ने सोशल मीडिया, खासकर एक्स पर तीखी प्रतिक्रियाएं जन्म दी हैं। कुछ यूजर्स ने टीएमसी के फैसले की आलोचना करते हुए इसे ‘भारत विरोधी राजनीति’ करार दिया। एक यूजर ने लिखा, ‘टीएमसी ने ऑपरेशन सिंदूर प्रतिनिधिमंडल में एक भी सांसद भेजने से इनकार कर दिया। शर्म करो ममता! तुम्हारा वजूद भारत की वजह से है।’ वहीं, कुछ ने ममता बनर्जी के रुख का समर्थन करते हुए कहा कि यह उनकी पार्टी की स्वायत्तता का सवाल है।

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