बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को ‘440 वोल्ट’ का झटका दिया है। तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ी आरजेडी मात्र 25 सीटें ही जीतने में सफर रही। आरजेडी को लगे इस ‘झटके’ का एहसास भा थमने वाला नहीं हैं। दरअसल, विधानसभा चुनाव में अपेक्षा से कम सीटें मिलने के बाद अब राज्यसभा चुनाव ने भी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

राज्यसभा में आरजेडी के सदस्यों की संख्या घटेगी
तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी आरजेडी को इस बार विधानसभा चुनाव में जितनी सीटें मिली हैं, उतने में एक सदस्य को भी राज्यसभा भेज पाना असंभव है। चूंकि एनडीए का विधानसभा में 202 सीटों पर कब्जा है, इसलिए उसकी तो बल्ले-बल्ले रहेगी। अप्रैल 2026 में बिहार कोटे की राज्यसभा में 5 सीटें खाली हो रही हैं, जिनके लिए निर्वाचन होगा। इन 5 में 4 सीटें एनडीए की हैं, जबकि 2 सीटों पर आरजेडी के सदस्य राज्यसभा गए थे। चूंकि आरजेडी के पास अब सिर्फ 25 विधायक हैं और उसके सहयोगी दलों के पास एमएलए हैं, इसलिए एक भी सदस्य को राज्यसभा भेज पाना संभव नहीं होगा। इसका नतीजा यह होगा कि राज्यसभा में आरजेडी के सदस्यों की संख्या घटेगी।
खाली हो रहीं राज्यसभा की 5 सीटें
अप्रैल 2026 में बिहार कोटे की राज्यसभा में 5 सीटें खाली हो रही हैं, जिनके लिए निर्वाचन होगा।इन 5 में 4 सीटें एनडीए की हैं, जबकि 2 सीटों पर आरजेडी के सदस्य राज्यसभा गए थे। इनमें जेडीयू के हरिवंश नारायण सिंह और रामनाथ ठाकुर, आरजेडी के प्रेमचंद गुप्ता और अमरेंद्र धारी सिंह है। इसके अलावा आरएलएम के उपेंद्र कुशवाहा शामिल हैं। एनडीए के लिए रिक्त स्थानों पर अपने लोगों को भेजने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन आरजेडी के लिए तो यह असंभव है।
2026 में राजद की दो सीटें दांव पर
वर्तमान में आरजेडी के पांच राज्यसभा सदस्य 2030 तक अलग-अलग अवधि में रिटायर हो जाएंगे। अप्रैल 2026 में प्रेमचंद गुप्ता (राज्यसभा में पार्टी नेता) और अमरेंद्र धारी सिंह का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। यानी 2026 अप्रैल में राजद की दो सीटें दांव पर हैं। इसके दो साल बाद जुलाई 2028 में फै़याज अहमद और अप्रैल 2030 में राजद के मनोज कुमार झा और संजय यादव का भी कार्यकाल समाप्त हो जाएगा।
खाली रह जाएंगे आरजेडी के हाथ!
राज्यसभा निर्वाचन में विधायकों की ही भूमिका होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो विधायक ही राज्यसभा सदस्य को चुनते हैं। बिहार में एक सदस्य के चुनाव में 41 विधायकों का समर्थन जरूरी है। राज्यसभा का चुनाव सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम से होता है। इसका जो पैमाना बना है, उसकी गणना कुल असेंबली सीट/6+1 (243/6+1 = 41) के आधार पर होती है। मसलन किसी उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 41 फर्स्ट प्रेफरेंस वाले वोट की जरूरत पड़ेगी। महागठबंधन के तमाम वोट एकत्र करने पर भी संख्या 35 से आगे नहीं बढ़ेगी। ऐसे में आरजेडी को अब किसी को राज्यसभा भेज पाना कम से कम 2030 तक तो संभव नहीं हो पाएगा। इस हिसाब से देखें तो विपक्ष के हाथ इस बार खाली रहेंगे।

