बिहार में कांग्रेस एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल के आगे नतमस्तक गई है। लगातार ना-नुकुर करने के बाद कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को सीएम फेस मान लिया। बेपानी हुई कांग्रेस का प्रेस कांफ्रेंस में प्रतिनिधित्व चूंकि राहुल गांधी नहीं कर सकते थे, इसलिए बलि का बकरा बना कर अशोक गहलोत को पटना भेजा गया। अशोक गहलोत पटना आये, तेजस्वी के सामने सार्वजनिक रूप से आत्मसमर्पण किया।

तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने से क्यों बच रही है?
बिहार वोटर अधिकार यात्रा के बाद कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज दिखी। करीब 2 हफ्ते की लंबी वोटर अधिकार यात्रा राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने एक साथ मिलकर निकाली थी। इस यात्रा को जनता का भरपूर प्यार भी मिला पर। हालांकि, इस दौरान तेजस्वी यादव का नेतृत्व उभरकर सामने नहीं आया। वो राहुल गांधी के पिछलग्गू ही दिखे थे। राहुल गांधी ने पूरी यात्रा के दौरान तेजस्वी को महागठबंधन की ओर से सीएम कैंडिडेट बोलने से परहेज करते दिखे। तेजस्वी खुद अपने आपको बिहार का सीएम कैंडिडेट बताते रहे पर राहुल ने एक बार इशारे में भी उन्हें सीएम का फेस स्वीकर नहीं किया। सवाल यह भी उठता है कि आखिर कांग्रेस तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा बनाने से क्यों बच रही है?
राजद की बैसाखी उतार फेंकने को तैयार थी कांग्रेस
दरअसल, राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ और 2024 के लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन (9 में से 3 सीटें) ने कांग्रेस को आत्मविश्वास दिया। जबकि पप्पू यादव को भी मिला दिया जाए तो कांग्रेस ने 4 सीटें जीतीं थी. दूसरी तरफ 2024 के ही लोकसभा चुनावों में आरजेडी ने 21 सीट पर चुनाव लड़कर 4 सीट ही जीत सकी। जाहिर है कि जीत का औसत कांग्रेस का आरजेडी के मुकाबले बहुत बेहतर रहा। पार्टी का मानना है कि वह बिहार में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकती है। जिसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच में ऐसा साफ दिखने लगा था कि कांग्रेस राजद की बैसाखी उतार फेंकने को तैयार हो गई है।
कांग्रेस ने फिर से राजद के आगे सरेंडर कर दिया
लेकिन 23 अक्टूबर के दो दिन पहले अचानक से राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत की एंट्री हुई और पूरा सीन ही पलट गया। इस दिन मीडिया को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आमंत्रण मिला। खासतौर पर ये आमंत्रण राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस की तरफ से आया। सुबह 11:30 बजे का वक्त रखा गया। लेकिन बाहर और अंदर लगे पोस्टरों ने एक बात साफ कर दी कि कांग्रेस ने फिर से राजद के आगे सरेंडर कर दिया है।
कांग्रेस के लिए आरजेडी के साथ समझौता क्यों बनी प्राथमिकता?
बिहार चुनावों ने एक बार फिर दिखा दिया है कि कांग्रेस को इस कठोर सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि गठबंधन में रहते हुए अब वह कोई फैसला नहीं ले सकती। एक समय था जब सवर्ण, दलित और मुस्लिम वर्ग कांग्रेस का मुख्य वोट बैंक माने जाते थे। लेकिन सन 2000 में सोनिया गांधी द्वारा लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले आरजेडी के साथ गठबंधन के बाद कांग्रेस का आधार तेजी से खिसकने लगा। लालू प्रसाद और सोनिया गांधी के पुराने संबंध के चलते कांग्रेस अक्सर वोटों के बिखराव से बचने के लिए आरजेडी के साथ समझौते को प्राथमिकता देती है। महागठबंधन के पास मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव से बेहतर चेहरा नहीं माना जा रहा। संगठनात्मक कमजोरी और नेतृत्व की कमी कांग्रेस के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती है।

