में वोटर लिस्ट के सत्यापन (वेरिफिकेशन) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हो रही है। बिहार में मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण अभियान के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत अनिवार्य है। हालांकि, कोर्ट ने एसआईआर कराए जाने की टाइमिंग पर सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि अगर आप प्रस्तावित चुनाव से कुछ महीने पहले ही यह फैसला लेते हैं तो क्या माना जाए?

बिहार में मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण सड़क से लेकर अदालत तक सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। कांग्रेस, आरजेडी समेत इंडिया गठबंधन की 9 पार्टियों ने वोटर लिस्ट सत्यापन की प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है। इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ याचिका पर सुनवाई कर रही है।
“परेशानी पुनरीक्षण से नहीं, दिक्कत इसके लिए चुने गए समय से”
आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आप मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है। अगर आपको पुनरीक्षण के जरिये नागरिकता की जांच करनी थी तो आपको यह पहले करना चाहिए था। इसमें अब बहुत देर हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परेशानी पुनरीक्षण प्रक्रिया से नहीं है। बल्कि दिक्कत इसके लिए चुने गए समय से है।
दायर की गई हैं 10 से ज्यादा याचिकाएं
उच्चतम न्यायालय में इस मामले के संबंध में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं जिनमें प्रमुख याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स है। आरजेडी सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के अलावा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, शरद पवार की एनसीपी से सुप्रिया सुले, भाकपा से डी राजा, समाजवादी पार्टी से हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उबाठा) से अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सरफराज अहमद और भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से शीर्ष अदालत का रुख किया है। सभी नेताओं ने बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती दी है और इसे रद्द करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।