बिहार विधानसभा चुनाव के पहले आरक्षण का मुद्दा गरमा गया है। विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव आरक्षण के मुद्दे पर नीतीश सरकार को घेरने में लगे हुए हैं। तेजस्वी यादव ने 5 जून को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने राज्य में आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग की थी। हालांकि, मुख्यमंत्री की ओर से इस पत्र का कोई उत्तर नहीं मिला है। जिसके बाद तेजस्वी ने नीतीश पर निशाना साधा है।

तेजस्वी ने उठाए ये सवाल
तेजस्वी यादव के जरिए आरजेडी व्हाट्सएप ग्रुप पर एक प्रेस नोट जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि क्या नीतीश कुमार ने मेरे पत्र का जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि उनके पास जवाब नहीं है।तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर आरोप लगाया कि सामाजिक न्याय का ढोल पीटने वाले ऐसे दल जिनके बलबूते मोदी सरकार चल रही है वो हमारी सरकार द्वारा बढ़ाई गयी 65% आरक्षण सीमा को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने में असफल क्यों है?
छोटी सी मांग को भी पूरा नहीं करा सकते है-तेजस्वी
तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे को लेकर एनडीए के सभी घटक दलों के बड़े नेताओं पर भी हमला बोला है। तेजस्वी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा को दलित,आदिवासी, पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्गों की इस हकमारी के खिलाफ आरक्षण पर मुंह खोलना चाहिए। सिर्फ़ कुर्सी से चिपके रहने के लिए राजनीति नहीं होती है। अगर प्रधानमंत्री से यह सब लोग इस छोटी सी मांग को भी पूरा नहीं करा सकते है तो इनका अपनी राजनीति एवं ऐसे गठबंधन में रहना धिक्कार है। अगर नीतीश जी, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के सामने इस विषय पर कुछ बोलने में असमर्थ है तो उन्हें विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाना चाहिए फिर देखिए कैसे हम इसे लागू कराते हैं।
नया आरक्षण विधेयक लाने की मांग
तेजस्वी यादव ने आगे कहा कि बिहार विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाकर एक नया आरक्षण विधेयक पारित करा कुल 85 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर इसे 9वीं अनुसूची में डालने की अनुसंशा केन्द्र सरकार से की जाए ताकि आरक्षण विरोधी तत्वों एवं भाजपाई सरकार को इसे भी विभिन्न माध्यमों से पुनः रद्द कराने का मौका न मिल सके। नेता प्रतिपक्ष ने पूछा कि क्या भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की नीतियों पर चल रही यह एनडीए सरकार नहीं चाहती कि वंचित वर्गों के आरक्षण की वर्तमान सीमा को बढ़ाकर 85 प्रतिशत किया जाए जिससे कि राज्य के दलित-आदिवासी, पिछड़ा अति पिछड़ा एवं अन्य दबे-कुचले लोगों को बढ़े हुए आरक्षण का यथाशीघ्र लाभ मिले तथा उन्हें शिक्षण संस्थानों में नामांकन के साथ-साथ सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल सके।