व्यापार बनती जा रही शिक्षा का मंदिर : निजी विद्यालयों में पढ़ाई जरुरी या किताबों की बिक्री कर कमीशन उगाही

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कई निजी विद्यालयों ने पाठ्य पुस्तकों में किए बदलाव

विभाग के आदेशों के वावजूद पाठ्य पुस्तकों में किए गए बदलाव

अभिभावकों को मजबूरी में चिन्हित दुकानों से ही खरीदने पड़ रहै है किताबें

एनसीईआरटी की जगह बदल दिए गए दूसरे पब्लिशर की किताबें

बाध्य होकर चिन्हित दुकानों से किताबों के साथ खरीदने पड़ते हैं स्टेशनरी

मिरर मीडिया धनबाद : एक तरफ शुल्क में वृद्धि कर निजी विद्यालय द्वारा मनमानी की जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ निजी विद्यालयो की सांठगांठ एवं संरक्षण में किताब दुकानदार अभिभावकों से मनमाना पैसा वसूल रहे है। कोरोना काल के दौरान आर्थिक स्थिति से डगमगाए अभिभावकों को राहत दिलाने के लिए जिला शिक्षा अधीक्षक ने सभी निजी विद्यालयों को पाठ्य पुस्तकों में किसी प्रकार के बदलाव नहीं करने के निर्देश दिए थे बावजूद निजी विद्यालयों ने कई पाठ्यक्रम में बदलाव कर दिए नतीजा अभिभावकों को नई किताबें खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा।

एक तरफ स्कूलों के द्वारा यह दिखावा  किया जाता है कि अभिभावक कहीं से भी किताब खरीद सकते हैं लेकिन दूसरी तरफ स्कूलों के द्वारा बुक लिस्ट जारी नहीं करने के कारण किताबें बाजार में सभी जगह नहीं मिलती है, जिसके कारण अभिभावकों को बाध्य होकर चिन्हित दुकानों से ही किताबें खरीदना पड़ता है। हालांकि किताब दुकानदारों के द्वारा किसी प्रकार की कोई डिस्काउंट अभिभावकों को नहीं की जाती है। एक दुकानदार ने बताया कि मोटी रकम स्कूल प्रबंधन को देना पड़ता है जिसके कारण अभिभावकों को डिस्काउंट करना कठिन हो जाता है।

सूत्र की माने तो स्कूल प्रबंधन किताब दुकानदारों से 40 से 45 परसेंट तक कमीशन लेते हैं यानी कि कहीं न कहीं मोटा कमीशन का रकम स्कूल प्रबंधन को किताब दुकानदारों के द्वारा पहुंचाया जाता है। यही कारण है कि एक ही किताब दुकानदार या यह कहें तो चिन्हित किताब दुकानदार एक ही स्कूल के लिए कई सालों से किताबों की बिक्री करते आ रहे हैं स्कूल प्रबंधन के साथ मिलकर मोटी रकम की उगाही कर रहे हैं एवम इस पर नियंत्रण करने वाला विभाग मौन है।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर निजी स्कूलों की किताबें केवल चिन्हित दुकान से ही क्यों मिलती है। स्कूल प्रबंधन बुक लिस्ट नए सत्र के शुरू होने से पहले क्यों नहीं सार्वजनिक करता है। सारी जानकारियों के बावजूद भी विभाग मौन क्यों है आखिर हर जगह अभिभावक ही क्यों लुटे जा रहे हैं चाहे वह शिक्षण शुल्क का मामला हो या किताब खरीदने का मामला।

बहरहाल पूरे मामले पर जांच परख कर जिला प्रशासन निजी स्कूल प्रबंधनो के ऊपर किस प्रकार की कार्रवाई करती है एवं अभिभावकों को कितना राहत पहुंचाती है यह देखने वाली बात होगी।

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