छठ पूजा, सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित आस्था और लोकपर्व का चार दिवसीय महापर्व 25 अक्टूबर 2025 से आरंभ हो रहा है। यह पर्व लोक संस्कृति, स्वच्छता और प्रकृति प्रेम का प्रतीक माना जाता है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में यह पर्व भव्यता और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
🗓️ छठ पूजा 2025 की प्रमुख तिथियां
पहला दिन: 25 अक्टूबर — नहाय-खाय
दूसरा दिन: 26 अक्टूबर — खरना (लोहंडा)
तीसरा दिन: 27 अक्टूबर — संध्या अर्घ्य (डूबते सूर्य को)
चौथा दिन: 28 अक्टूबर — उषा अर्घ्य (उगते सूर्य को)
🌿 पहला दिन – नहाय-खाय (25 अक्टूबर)
छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती महिलाएं गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करती हैं। यदि नदी उपलब्ध न हो तो घर में ही पवित्र जल से स्नान कर घर की साफ-सफाई और शुद्धिकरण किया जाता है।
व्रती इस दिन केवल एक बार सात्विक भोजन करती हैं — जिसमें लौकी-चना दाल की सब्जी और चावल मुख्य होता है। सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है और पूरा भोजन पूर्ण शुद्धता से पकाया जाता है।
🍲 दूसरा दिन – खरना (26 अक्टूबर)
खरना को लोहंडा भी कहा जाता है। इस दिन से 36 घंटे का निर्जला उपवास आरंभ होता है।
व्रती दिनभर बिना जल और अन्न ग्रहण किए रहते हैं। शाम को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से गुड़ की खीर (रसिया) और घी लगी रोटी बनाई जाती है। सूर्य देव की पूजा के बाद व्रती पहले स्वयं प्रसाद ग्रहण करती हैं और फिर व्रत शुरू करती हैं।
🌇 तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर)
छठ का तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन अस्ताचलगामी (डूबते हुए) सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
व्रती सूप या बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल, गन्ना, नारियल और मौसमी प्रसाद लेकर नदी, तालाब या घाट पर पहुंचते हैं।
पानी में खड़े होकर सूर्य की अंतिम किरण को जल, दूध और फूलों से अर्घ्य दिया जाता है।
इसका प्रतीकात्मक अर्थ है — जीवन के हर कठिन समय का भी आदर करना।
🌅 चौथा दिन – उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर)
अंतिम दिन प्रातः काल व्रती पुनः घाट पर पहुंचते हैं और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
सूर्य की पहली किरण के साथ पूजा सम्पन्न होती है। इसके बाद व्रती कच्चे दूध और प्रसाद से व्रत खोलती हैं, जिसे पारण कहा जाता है।
प्रसाद घर, परिवार और आस-पड़ोस में बांटा जाता है, जो एकता और प्रेम का प्रतीक है।
☀️ छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि स्वच्छता, संयम और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है।
सूर्य देव की उपासना से ऊर्जा, आरोग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। छठी मैया (षष्ठी देवी) को संतान की रक्षा करने वाली और मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी माना गया है।
व्रती इन चार दिनों तक सात्विक और संयमित जीवनशैली अपनाते हैं।
🙏 लोक संस्कृति की पहचान
यह पर्व सामूहिक आस्था और सामाजिक एकता का अद्भुत उदाहरण है। घाटों की सफाई, लोकगीतों की गूंज, पारंपरिक प्रसाद और परिवारों का मिलन — सब मिलकर छठ को भारत की जीवंत लोक परंपरा का सबसे पवित्र अध्याय बनाते हैं।

