झारखंड और पश्चिम बंगाल के करीब 40 ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी के बाद कोयला चोरी और अवैध खनन को लेकर चर्चा तेज हो गई है। धनबाद सहित पूरे कोयलांचल में हलचल मची हुई है। इस बीच कोल इंडिया की सबसे बड़ी इकाई भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) के सीएमडी द्वारा सार्वजनिक मंच से कोयला चोरी की बात स्वीकार किए जाने के बाद कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
सीएमडी का बयान: ‘कोयला उद्योग संकट में’
बीसीसीएल के सीएमडी ने साफ कहा है कि कोयला उद्योग इस समय संकट के दौर से गुजर रहा है। कोयले की मांग अपेक्षा से कम है, डिस्पैच प्रभावित हुआ है और अवैध खनन व कोयला चोरी से कंपनी को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। वित्तीय वर्ष समाप्त होने में अब महज तीन महीने बचे हैं और ऐसे में कंपनी के प्रदर्शन को लेकर चिंता बढ़ गई है।
अचानक मुखर क्यों हुए सीएमडी?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि बीसीसीएल के सीएमडी अचानक कोयला चोरी पर इतने मुखर क्यों हो गए? क्या हालात वाकई बेकाबू हो चुके हैं? जानकारों का मानना है कि यह स्वीकारोक्ति इस बात का संकेत है कि वर्षों से चला आ रहा ‘सिस्टम फेल्योर’ अब कंपनी के लिए खतरा बन चुका है।
आउटसोर्सिंग कंपनियों की भूमिका पर सवाल
कोयला कंपनी और आउटसोर्सिंग कंपनियों की सांठगांठ कोई नई बात नहीं है। जिन शर्तों पर आउटसोर्सिंग कंपनियों को काम दिया जाता है, उनका न तो कभी ठोस सुरक्षा ऑडिट होता है और न ही यह आकलन कि कितनी मात्रा में कोयला निकाला गया और कितना वास्तव में कंपनी को मिला। आरोप है कि इसी खामी का फायदा उठाकर कोयला चोरी और तस्करी का नेटवर्क फल-फूलता रहा और इसमें शामिल लोग देखते-देखते “धनपशु” बन गए।
ईसीएल की राह पर बीसीसीएल?
अब यह आशंका भी जताई जा रही है कि कहीं बीसीसीएल भी ईसीएल (ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की राह पर तो नहीं चल पड़ी। यदि ऐसा हुआ तो इसका असर सिर्फ कोयलांचल की अर्थव्यवस्था पर ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया पर भी पड़ेगा। गौरतलब है कि कोकिंग कोल की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी बीसीसीएल ही है, लेकिन मौजूदा हालात में खरीदारों की कमी, बढ़ता कोयला स्टॉक और गुणवत्ता को लेकर उठ रहे सवाल कंपनी के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं।
महंगा और घटिया कोयला?
सरकारी संस्थानों तक से यह आरोप लगते रहे हैं कि बीसीसीएल का कोयला न सिर्फ महंगा है, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी संतोषजनक नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या गुणवत्ता गिरने के पीछे भी कोई ‘खेल’ चल रहा है? क्या निचले स्तर के अधिकारियों और आउटसोर्सिंग कंपनियों के बीच मिलीभगत है?
90% उत्पादन आउटसोर्सिंग पर निर्भर
बीसीसीएल का लगभग 90 प्रतिशत कोयला उत्पादन आउटसोर्सिंग कंपनियों के भरोसे है। आरोप है कि ये कंपनियां बीसीसीएल में समानांतर व्यवस्था चला रही हैं। कोयला चोरी और तस्करी रोकने के लिए जो कदम मैनेजमेंट को उठाने चाहिए थे, वे अब तक नहीं उठाए गए। इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
‘पुराना पाप’ बना बड़ा खतरा
कंपनी एक ओर सीआईएसएफ की सुरक्षा व्यवस्था का भारी बोझ उठाती रही और दूसरी ओर कोयला चोरी और तस्करी जारी रही। अब जब सीएमडी स्वयं सार्वजनिक रूप से इस सच्चाई को स्वीकार कर रहे हैं और उसे रोकने की दिशा में हाथ जोड़ते नजर आ रहे हैं, तो साफ है कि बीसीसीएल का ‘पुराना पाप’ अब उसी के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।
अब देखना यह होगा कि ईडी की कार्रवाई और सीएमडी के कबूलनामे के बाद क्या वास्तव में कोयला चोरी पर लगाम लगेगी या फिर यह मुद्दा भी फाइलों और बयानों तक ही सिमट कर रह जाएगा।

