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हेमंत सरकार के चार साल हुए पूरे, नही बदली झारखंड की दशा, स्थिति में नही हुआ कोई सुधार

झारखंड : 29 दिसंबर यानी शुक्रवार को हेमंत सरकार ने अपने चार साल के कार्यकाल को पूरा कर लिया है। इससे पहले हेमंत सरकार द्वारा गुरुवार को अपने कामकाज का ब्योरा पेश किया गया। इस दौरान सरकार ने बढ़ चढ़ कर अपनी उपब्धियों को लोगों के सामने रखा। चाहे शिक्षा व्यवस्था हो या स्वास्थ्य व्यवस्था सभी क्षेत्रों में सरकार ने अपने काम को खूब गिनवाया।
दअरसल,हेमंत सोरेन के लिए 2024 कई मायनों में खास होने वाला है, क्योंकि इसी साल लोकसभा के भी चुनाव होने हैं, इन चुनावों के खत्म होने के बाद विधानसभा के चुनाव आ जाएंगे। ऐसे में सरकार लगातार अभी से ही अपनी उपलब्धियों को लोगों के सामने ले जा रही है।

लेकिन वास्तविकता में सरकार के इन आंकड़ों और वर्तमान स्थिति में अभी भी बहुत अंतर देखा जा सकता है|

विद्यालयों की स्थिति में नही हुआ सुधार: एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के एक तिहाई प्राथमिक स्कूल केवल एक ही टीचर के भरोसे चल रहे हैं।
गौरतलब है कि इन स्कूलों में 90 फीसदी बच्चे दलित और आदिवासी परिवारों से आते हैं।
वहीं स्कूलों पर किए सर्वेक्षण से पता चला है कि सर्वे में शामिल किसी भी स्कूल में शौचालय और बिजली, पानी की सुविधा नहीं थी। यदि कहीं शौचालय हैं भी तो वो जर्जर अवस्था में हैं। जिनका होना न होना बराबर है। ऐसे में पहले ही अनगिनत कठिनाइयों का सामना कर रहे इन बच्चों का भविष्य कैसा होगा इसकी कल्पना भी विचलित कर देती है।

भ्रष्टाचार पर नही लगा लगाम: पिछले चार सालों झारखंड में भ्रष्टाचार का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। चाहे शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो सडक हो, बिजली हो सभी की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। एनसीआरबी के रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में 63, 2021 में 56 और 2022 में भ्रष्टाचार से जुड़े 67 मामले दर्ज हुए हैं। इस तरह साल 2022 में 2020 और 2021 की तुलना में भ्रष्टाचार के मामले बढ़े हैं वहीं 2022 में भ्रष्टाचार के मामले में 51 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है।जबकि 44 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट की गयी है।
वहीं झारखंड में भ्रष्टाचार के 260 मामले पेंडिंग हैं। इसके अलावा भ्रष्टाचार के दो मामलों में जांच एजेंसी ने फाइनल रिपोर्ट जमा की है। वहीं 72 मामलों में चार्जशीट की गयी है। साथ ही झारखंड में भ्रष्टाचार के 596 मामलों में ट्रायल चल रहा है।

स्वास्थ्य व्यवस्था भी बदहाल : झारखंड के हेल्थ सिस्टम के डाटा पर नजर डालेंगे तो आपके होश उड़ जाएंगे।इस राज्य में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 1,021 पद सृजित हैं।लेकिन इसकी तुलना में सिर्फ 185 डॉक्टर सेवारत हैं।ऐसे में भला गंभीर बीमारी से ग्रसित गरीब का इलाज कैसे हो पाएगा।स्वास्थ्य विभाग की दलील है कि विशेषज्ञ चिकित्सकों के रिक्त पदों को भरने के लिए जेपीएससी को भेजी गई है।आयोग की ओर से 193 स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की अनुशंसा भी मिली है पर नियुक्ति कब तक होगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड यानी आईपीएचएस के मुताबिक 10 हजार की आबादी पर 01 डॉक्टर का होना जरुरी है। इस कमी का असर सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों की ओपीडी में देखा जा सकता है।मरीजों की लंबी-लंबी कतारें लगीं रहती हैं। डॉक्टर्स पर इतना लोड है कि ठीक से मरीजों की तकलीफ भी नहीं सुन पाते है।

बेरोजगारी का नही हुआ कोई समाधान: रोजगार के नाम पर झारखंड के युवाओं को हमेशा से छलने का काम किया गया है। रिपोर्ट की माने तो झारखंड में प्रति वर्ष बेरोजगारी दर में लगातार वृद्धि हो रही है। बावजूद इस पर कोई ध्यान देने वाला नही है। यहां तक कि नेताओं द्वारा इन रिपोर्टों को गलत करार देकर राजनीतिक रूप दे दिया जाता है। हेमंत सरकार 5 लाख युवाओं को रोज़गार देने के वादे से सत्ता में आई थी पर हाल यह कि सरकार एक प्रतियोगी परीक्षा को भी ठीक से नही ले पा रही है ।

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