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Jamshedpur : चौराहे पर खड़ा देश, प्रतीक्षा नीतीश और नायडू के फैसले का : प्रभात कुमार

डिजिटल डेस्क। जमशेदपुर : अहले सुबह से ही मैं परिवर्तन देख रहा हूं। आज जंगल में खुशनुमा सुबह की आहट मिल रही है। कई बरसों के बाद गुमसुम चिड़ियों की चहचहाट सुनाई पड़ रही है। उत्तर-पूर्व के कोने में फैली सूरज की लाली में गुनगुनी मंद मंद ठंडी हवा कर्कश गर्मी से राहत का संकेत दे रहा है। कुल मिलाकर अर्से बाद खुशनुमा मौसम का संकेत है।

चुनाव हुआ है। बहुत घमासान हुआ है। लगभग 3 महीने सबके पसीने छूटते रहे और जनता चुप्पी मार कर बैठी थी। उसके इरादा को टटोलना वाली तोलने वाली सारी एजेंसी लगभग फेल रही। कश्मीर से कन्याकुमारी और द्वारिका से पूरी यात्रा के बावजूद हिमालय को फतह करने का संकल्प उसकी चोटी से कुछ दूर पहले पहुंच कर अटक गया है। जनता की ताकत के बावजूद इंद्र के दरबार के तमाम शक्तिशाली तत्वों ने सिंहासन तक पहुंचने के पहले जादुई आंकड़े को रोक दिया है। इस चुनाव में कुबेर ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। नारद ने प्रचार के तमाम मील के पत्थरों को पीछे छोड़ते हुए लोगों को गुमराह करने में हर शक्ति लगा दी। लेकिन यह कार्य दोनों तरफ से हुआ। दोनों तरफ से अपने-अपने तर्क और पक्ष गढ़े गए। निष्पक्ष कुछ भी नहीं था। अपने-अपने लाभ और हित के साथ दोनों खड़े थे।

फैसले से पहले की रात मैंने सोचा। आखिर देश कहां खड़ा है? बहुत सोच विचार करने के बाद मैं इसके निष्कर्ष पर पहुंच कि जो मीडिया का अनुमान है। उसमें दोनों तरफ से लगभग घालमेल है। जहां ज्यादा कुबेर का धन खर्च हुआ है। वहां कुछ ज्यादा है और पुराने सरकार वाले लोगों के पक्ष में काम करने मीडिया ने उसका आधा घालमेल किया है। दोनों एक पक्षी हैं। परिणाम नाम के बाद जो आंकड़ा आया। उससे यह साफ था।
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में लगभग 3 महीने चला चुनाव पहली बार था। ईवीएम के आने के बाद चुनाव परिणाम घोषित होने में इतनी देरी पहली बार लगी। एनडीए 292 पर आकर अटक गया है। यह तीसरी बार बहुमत उसके साथ है लेकिन 2014 से लेकर 2024 में सबसे बड़ा अंतर यह है कि भारतीय जनता पार्टी को मोदी मैजिक और मोदी की गारंटी के बावजूद स्पष्ट बहुमत नहीं है। इससे साफ लगता है कि इस बार के चुनाव में मोदी है तो मुमकिन है। इस जुमले पर जनता ने विराम लगा दिया है। फिर भी मोदी और शाह है तो इस देश में सब कुछ संभव है। यह विश्वास अभी भी इस देश की एक बड़ी आबादी को बनी हुई है। इसमें सिर्फ अमीर ही नहीं गरीब भी हैं। गरीबों में यह भ्रम बीते 10 सालों में जो हुआ उसे देखते हुए बना हुआ है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कई ऐसे राज्य हैं। जहां इस देश की जनता ने इस सच को देखा है लेकिन महाराष्ट्र की जनता का फैसला कुछ अलग है।

उड़ीसा में लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा का भी चुनाव हुआ। जनता का परिणाम इस राज्य में हुए विकास कार्यों के विपरीत है। एक गाना है अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का….। नवीन बाबू बीते दिनों सब कुछ के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अच्छे बुरे दिन में उनके साथ अलग होकर भी खड़े थे। फिर भी भाजपा ने लोकसभा में एक चिराग को छोड़कर सारे पावर हाउस अपने कब्जे में ले लिया है। राज्य की सत्ता भी चली गई है। अरुणाचल में भी जहां चुनाव से पहले ही कई निर्विरोध ही चुन लिए गए थे। भारतीय जनता पार्टी का परचम लहराया है। यह इन दोनों राज्यों के परिणाम अभी भी संकेत दे रहे हैं कि भले ही जनता ने गारंटी की बात को इनकार कर दिया है लेकिन मोदी और शाह का जलवा कायम है। शाह साहब मोदी पर ज्यादा भारी पड़े हैं। वैसे वह सुरक्षित मांग से चुनाव लड़े थे और रिकॉर्ड वोट से जीते हैं। अच्छे दिन का वादा करने वाले पीएम मोदी भगवान काशी विश्वनाथ के नगरी में दूसरी बार मैदान में थे। पसीने पसीने हो गए। एक अदना सा पहलवान से लड़े। फिर भी 2019 के मुकाबले 152000 वोटो से जीते। कई राउंड में उन्हें पीछे भी जाना पड़ा। वहीं राहुल गांधी जीते ही नहीं। उनके जीत का आंकड़ा मोदी जी के जीत के आंकड़ा से डबल से भी ज्यादा रहा।

अयोध्या में भी बहुत बुरा हुआ। राम को हम लाए हैं, मोदी को लाएंगें का भरोसा पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी को था लेकिन अयोध्या में ही सुपड़ा हो गया। बीजेपी की हार हुई। उत्तर प्रदेश ने पूरे देश को अपने फैसले से चौंकाया। सच तो यह है कि किसी ने भी इसका अनुमान नहीं किया था। भले ही अब बोलने के लिए जो दावा करें। अपने संपत्ति और हित के लिए सरकार के सामने नतमस्तक होने वाली मायावती का साथ इस चुनाव में उनके सहयोगियों और बहुजन समाज के लोगों ने छोड़ दिया। उत्तर प्रदेश में मायावती की जगह चंद्रशेखर आजाद ने ली। उत्तर प्रदेश का परिणाम कुछ यही कहता है। बिहार में भी बहुत कुछ बदला। बिहार में ही इंडिया गठबंधन की आधारशिला रखी गई थी। लेकिन इसमें शामिल कुछ महत्वकांक्षी नेताओं के कारण शुरू में ही खेल बिगड़ गया। अपने परिवार का मोह, लालसा और हित आखिरकार भारी पड़ा। इसके कारण इस चुनाव के दौरान भी कई बार बड़ा झटका लगा। राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव इसका एक उदाहरण हैं। वीरू और जीतू की जोड़ी ने जरूर बिहार में हर-होड़ मचाया लेकिन अगर गठबंधन धर्म और संयुक्त चुनाव अभियान होता तो बिहार वह कोर- कसर नहीं छोड़ पाता। यही नहीं उम्मीदवारों का चयन आरजेडी को छोड़कर अन्य दलों में भी महागठबंधन अपने बाल- बच्चों मामले जैसा पहले ही ले लिया गया होता और कुछ पहलवान स्वच्छ विचार कर ले गए होते तो यह स्थिति नहीं पैदा होती। इसके कारण देश एक धर्म संकट स्थिति पैदा हुई है और देश चौराहे पर खड़ा हो गया है। जहां अनिश्चितता के बादल फिर से मंडराने लगे हैं। चालाक भेड़िए और सियार से खतरे बढ़ गए हैं। याद रहे ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की इंडिया गठबंधन में होने और अलग से चुनाव लड़ने के फैसले का।
इस मौके पर कई बातें गौर करने की है। कांग्रेस को एक बार फिर से अपने दक्षिण के दुर्ग के मोह के साथ-साथ उत्तर,पूर्व और मध्य भारत पुराने किले के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। स्तर पर उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड, पश्चिम बंगाल उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश। इस बार समुद्रीय तट के इलाके में जो हवा चली। उसके संकेत आगे और खतरनाक हो सकता है।
फिर भी 53 साल की आयु में राहुल गांधी ने जिस तरह से तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हिमालय की दीवारों से टकराया है। गर्जना के साथ उसे जवाब दिया है। निर्भीक होकर अभियान को चलाया है। इसकी जितनी सराहना और प्रशंसा की जाए वह काम है। इस अभियान में बिहार और उत्तर प्रदेश के दो युवा नेताओं ने भी जिस तरह से और अपनी बुलंदी को जनता के बीच बनाए रखा वह भी कम काबिले तारीफ नहीं है, लेकिन इन्हें याद रखना होगा। अपने पूर्वजों को लेकर जनता के बीच एंटी इनकंबेंसी और परिवार का अंतर्कलह। उन्हें अपने पुराने दिनों के काले बादलों को पूरी तरह से दूर करने के लिए तमाम पुराने धब्बों से सबक लेना होगा। अभी जनता का दिल और जीतने की जरूरत है। समाज और संप्रदाय को भी संयम का पाठ पढ़ने की जरूरत है। सत्ता पर काबिज शक्तियां इतनी आसानी से कुर्सी नहीं खाली करेगी। सबको मालूम है कि उनके पैठ किस तरह और किस कारण से घर-घर में बनी हुई है। अयोग्यों के भी हम पैर पूजने के आदि रहे है। विरासत में मिली है लेकिन हम अपने बच्चों को इसके लिए विवश कर नहीं छोड़ जाएं।
अंत में मैं इतना ही कहूंगा कि इस देश में बहुजनों का हित और सर्वजनों की भलाई समता मूलक समाज में है। देश के जनतंत्र की रक्षा के लिए संविधान की रक्षा सबसे जरूरी है। देश में जारी विषमता को खत्म करने के लिए अभी आरक्षण की जरूरत है। सर्व धर्म समुदाय का हित और कल्याण इस देश की आत्मा है। भारत की फुलवाड़ी की खासियत है। एक अदना सा आदमी मैं जब इन बातों को समझ रहा हूं तो आज की तारीख में अब इसकी यह बीमारी जिनके कंधों पर है। वह इसे बेहतर समझते होंगे। मुझे पूरा भरोसा है कि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की तरफ जो आसानी की नजर है। निश्चित तौर पर वह इस देश के क्षेत्र में फैसला लेंगे। उनका फैसला जनता के हित में होगा। इस राष्ट्र कल्याण के लिए होगा। जनता ने अपना काम कर दिया है। अब नेताओं की बारी है। कुर्सी भी अभी खाली है।

लेखक : प्रभात कुमार

(राजनीतिक विश्लेषक)

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