बगैर परिवहन चलान के सरकारी विभागों में धड़ल्ले से होता है खनिज संपदाओं का उपयोग, एक साल में खनन विभाग को दिया करोड़ों का जुर्माना

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धनबाद: अब तक आपने निजी कंपनियों और ऐजेंसियों से खनिज संपदाओं की अवैध खनन और परिवहन को लेकर पैनाल्टी भरने या वसूलने की बात सुनी होगी,लेकिन इसमे सरकारी विभागों भी शामिल हैं और इन्हें करोड़ों की पैनाल्टी देनी पड़ती है।

आखिर ऐसा क्या हो गया कि सरकारी विभागों को भी पैनाल्टी देनी पडी। इस पैनाल्टी का भुगतान किस मद से किया गया,यह जांच का विषय है क्योंकि पैनाल्टी की रकम छोटी नहीं है बल्कि करोडों में है।

जिन सरकारी विभागों ने पैनाल्टी दिया है उनमें पथ निर्माण विभाग, भवन निर्माण, पेयजल विभाग, निगम समेत कई सरकारी विभाग शामिल है। इन सरकारी विभागों ने बिना चालान के खनिज संपदाओं व परिवहन का उपयोग किया। नतीजा खनन विभाग को हर साल करोड़ों रुपए की पेनल्टी इन विभागों से मिलती है।

पूरे झारखंड में वित्तीय वर्ष 22 -23 में 300 से 350 करोड़ रुपए पेनेल्टी इन विभागों ने दिया है। जबकि धनबाद में सिर्फ खनन विभाग को 17 से 19 करोड़ पेनाल्टी मिला है राज्य में खनिज संपदाओं की हो रही चोरी पर अंकुश को लेकर लगातार अभियान चलाए जाते हैं। कार्रवाई भी होती है और जुर्माना में वसुला जाता है। अधिकारियों का लक्ष्य स्पष्ट है।

खनिज संपदाओं और राजस्व की हो रही चोरी पर रोक लगाना। अवैध खनिज संपदाओं के खनन और परिवहन में दो बाते खास है एक तो चोरी और दूसरा राजस्व का नुकसान। यहां बता दें कि पूरे राज्य में सभी विभागों को अपने क्षेत्र में विकास के कार्य के लिए खनिज संपदाओं की आवश्यकता होती है, लेकिन यह सभी विभाग ने बिना चालान के ही खनिज संपदाओं का उपयोग कर रहें हैं। जिसके लिए इन्हें करोड़ों रुपए की पेनाल्टी खनन विभाग को देनी पड़ती है। जबकि JMMC 2004 (झारखंड माइन्स मिनरल कंसेशन)में विशेष प्रावधान के अनुसार कोई भी विभाग उपायुक्त से लीज प्राप्त कर सकता है। राज्य सरकार ने जारी गजट में सभी को लीज लेकर कार्य करने की छूट दे रखी है बावजूद लीज से संबंधित कोई आवेदन विभाग द्वारा नहीं दिए गए यानी कि विभाग पेनाल्टी भरना मुनासिब समझती हैं।

अब करोड़ों रुपए के पेनाल्टी विभाग के जेब से भरा जाता है या ठेकेदार स्तर से मैनेज करवाया जाता है यह जांच का विषय है। अगर विभाग अपने जेब से जुर्माना भर रहा है तो यह पैसे कहां से आ रहे हैं इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं अगर विभाग अपने स्तर से मैनेज करता है तो SOR (शेड्यूल ऑफ रेट) में कहीं ना कहीं हेरा फेरी की जा रही है और अगर ठेकेदार के स्तर से मैनेज हो रहा है तो गुणवत्ता पर सवाल उठना लाजिमी है जबकि कई दफा तीस से 35 प्रतिशत कम रेट डालकर टेंडर लेने की बात सामने आती है ऐसे में कार्य किस प्रकार के हो रहे हैं इस पर भी सवाल उठना लाजिमी है.अब सवाल यह उठता है कि अगर विभाग द्वारा बिना चालान के खनिज संपदाओं का उपयोग हो रहा है तो इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही, आम लोगों के टैक्स के पैसे से विकास के कार्य होते हैं ऐसे में कहीं ना कहीं कार्यों की गुणवत्ता और राजस्व की हो रही हानि पर जांच कर सख्ती बरतने की जरूरत है।

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