नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए देश में जाति आधारित जनगणना कराने की घोषणा की है। इस जनगणना में हर नागरिक से उसकी जाति की जानकारी ली जाएगी, और इसके लिए जनगणना के फॉर्म में अलग से जाति का कॉलम जोड़ा जाएगा। यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब बिहार विधानसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं और विपक्ष लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहा था।
जाति जनगणना की मांग और विपक्ष की रणनीति
कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, और अन्य विपक्षी दल लगातार यह मांग करते रहे हैं कि देश में जाति जनगणना कराई जाए ताकि सामाजिक न्याय की दिशा में ठोस नीतियाँ बनाई जा सकें। राहुल गांधी ने बार-बार कहा है कि जब तक देश को यह नहीं पता कि किस जाति की जनसंख्या कितनी है, तब तक संसाधनों का सही बंटवारा संभव नहीं है। उन्होंने यह भी ऐलान किया था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो वह न केवल जातिगत जनगणना कराएंगे, बल्कि आरक्षण की वर्तमान 50 प्रतिशत सीमा को भी तोड़ देंगे।
ऐसे में मोदी सरकार के इस फैसले को विपक्ष की रणनीति पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ माना जा रहा है। अब सरकार खुद यह आंकड़ा इकट्ठा करेगी, जिससे विपक्ष के हाथ से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा निकल गया है।
अश्विनी वैष्णव का बयान: “बिना बवाल के ऐतिहासिक कदम”
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को कैबिनेट मीटिंग के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि यह फैसला समाज के हर वर्ग के कल्याण को ध्यान में रखकर लिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे नीतियां बनाने में मदद मिलेगी और लाभ का सही वितरण हो सकेगा। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2010 में इस पर विचार करने की बात तो कही थी, लेकिन अमल कभी नहीं हुआ। सिर्फ एक सीमित सर्वे ही किया गया।
राज्यों की जाति जनगणना: अब तक मिली-जुली तस्वीर
कई राज्यों ने अपने स्तर पर जातिगत सर्वेक्षण किए हैं। बिहार ने हाल ही में जाति आधारित सर्वे कराया था, जिसके लिए तेजस्वी यादव और विपक्षी नेता श्रेय लेते रहे हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार के इस कदम से नीतीश कुमार और भाजपा को इसका बड़ा राजनीतिक लाभ मिल सकता है। कर्नाटक में हुई जाति जनगणना पर विवाद भी हुआ था, जिसे अश्विनी वैष्णव ने “गैर-प्रमाणिक” बताया।
राजनीतिक असर और रणनीति
विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार का यह फैसला रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। खासकर बिहार जैसे राज्य में, जहां जातिगत समीकरण चुनावी जीत का बड़ा आधार बनते हैं। मोदी सरकार ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया है, जब विपक्ष इसे एक बड़े मुद्दे के रूप में पेश कर रहा था। अब जाति जनगणना के ज़रिए भाजपा और एनडीए खुद को सामाजिक न्याय की राजनीति के केंद्र में स्थापित करने की कोशिश करेंगे।