महासप्तमी का महत्व
शारदीय नवरात्रि का आज सातवां दिन यानी महासप्तमी है। इस दिन मां दुर्गा की सातवीं शक्ति माता कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि माता कालरात्रि अपने भक्तों के भय और शत्रुओं का नाश करती हैं और जीवन में आत्मविश्वास, साहस तथा विजय प्रदान करती हैं। नवरात्रि के इस दिन को विशेष रूप से निशा पूजा का महत्व प्राप्त है।
माता कालरात्रि का स्वरूप
मां कालरात्रि का स्वरूप उग्र और भीषण है, लेकिन वे भक्तों को शुभ और मंगल प्रदान करती हैं। उनका रंग कृष्णवर्ण है। चार भुजाओं में एक हाथ में खड्ग, दूसरे में वज्र और दो हाथ अभय एवं वरद मुद्रा में रहते हैं। उनका वाहन गर्दभ (गधा) है। बिखरे हुए बाल, गले से निकलती विद्युत जैसी ज्योति और शरीर पर तेल का लेप उनके स्वरूप को और भी प्रभावशाली बनाता है। हालांकि उनका रूप उग्र है, फिर भी वे भक्तों के लिए शुभंकरी यानी शुभता देने वाली मानी जाती हैं।
पुराणों में वर्णन
देवी माहात्म्य और पुराणों के अनुसार, जब शुम्भ-निशुम्भ और रक्तबीज जैसे असुर अत्याचार करने लगे, तब देवी चण्डिका ने अपने क्रोध से उग्रतम रूप प्रकट किया। यही रूप मां कालरात्रि कहलाया। विशेष रूप से रक्तबीज का वध भी माता के सहयोग से ही संभव हुआ, क्योंकि उसके रक्त की हर बूंद से नया दैत्य उत्पन्न हो जाता था। तब माता कालरात्रि ने अपना विशाल मुख फैलाकर रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही पी लिया और देवताओं को विजय दिलाई।
पूजा विधि
महासप्तमी के दिन सुबह स्नान कर घर के पूजा स्थान को साफ किया जाता है। इस दिन लाल, नीले या काले रंग का वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। पूजा में माता कालरात्रि की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर गंगाजल से शुद्धिकरण किया जाता है। इसके बाद गुड़, शहद, गन्ना, काले चने, सूजी का हलवा, शमीपत्र, धूप, दीप और चंदन अर्पित कर माता की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान माता का ध्यान कर दीप प्रज्वलित किया जाता है और शुद्ध चित्त से मंत्र जप किया जाता है।
ध्यान मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
बीज मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
भोग अर्पण
मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए गुड़, काले चने, गन्ना, शहद और शमीपत्र अर्पित किए जाते हैं। यह भोग देवी को अत्यंत प्रिय माना जाता है। माना जाता है कि इस भोग से माता प्रसन्न होकर भक्तों को असीम शक्ति, साहस और जीवन में विजय का आशीर्वाद देती हैं।