डिजिटल डेस्क। मिरर मीडिया: प्रत्येक वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है। इस बार शारदीय नवरात्र का शुभारंभ 11 अक्टूबर से हो चुका है। इस उत्सव के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि घर में मां चंद्रघंटा के आगमन से सुख-शांति का वास होता है। उन्हें स्वर की देवी भी कहा जाता है, जो असुरों और दुष्टों का नाश करती हैं। मां चंद्रघंटा सिंह पर सवार होती हैं और उनके पूजन से व्यक्ति को आध्यात्मिक एवं आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है।
मां चंद्रघंटा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दानवों के बढ़ते आतंक से धरती को मुक्त करने के लिए मां दुर्गा ने चंद्रघंटा रूप धारण किया। महिषासुर नामक राक्षस ने देवराज इंद्र का सिंहासन हड़प लिया था और स्वर्ग पर अपना अधिकार जमाना चाहता था। इससे चिंतित देवी-देवताओं ने त्रिदेवों—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—से मदद मांगी। त्रिदेवों की क्रोधाग्नि से उत्पन्न हुई ऊर्जा से एक देवी का जन्म हुआ, जिनका नाम चंद्रघंटा रखा गया।
महादेव ने उन्हें त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, और अन्य देवी-देवताओं ने भी अपने-अपने अस्त्र मां को भेंट किए। इंद्र ने उन्हें अपना घंटा प्रदान किया, जिससे उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का सामना किया। महिषासुर ने उनकी शक्ति को पहचानते हुए युद्ध किया, लेकिन अंततः मां चंद्रघंटा ने उसका वध कर स्वर्गलोक को दानवों से मुक्त किया।
पूजा का महत्व और शुभ रंग
मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक बल मिलता है और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। इस दिन का शुभ रंग ग्रे है। यदि पूजा के समय आप इस रंग के वस्त्र धारण करते हैं, तो देवी आपकी आत्मिक ऊर्जा को प्रबल करती हैं। यह रंग सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है और व्यक्ति को उत्साह से भर देता है।
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
मां चंद्रघंटा की पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
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