सुप्रीम कोर्ट आज 1976 में संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाएगा। यह मामला इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान किए गए 42वें संविधान संशोधन से जुड़ा है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि इमरजेंसी के दौरान इन शब्दों को गलत तरीके से जोड़ा गया था, और यह संविधान सभा के मूल दृष्टिकोण का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा को संविधान में स्थान देना उचित नहीं है। उनका कहना है कि संविधान की प्रस्तावना को 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने मंजूरी दी थी, और उस समय यह शब्द इसमें शामिल नहीं थे। बिना संविधान सभा की स्वीकृति के प्रस्तावना में बदलाव को अनुचित बताया गया है।
इस फैसले को लेकर राजनीतिक गलियारों में खासी हलचल है, खासकर जब वर्तमान सरकार पर विपक्ष लगातार संविधान बदलने के आरोप लगा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने वाले दिनों में बड़े राजनीतिक और कानूनी प्रभाव डाल सकता है।